२६८ उत्कल (उड़ीसा) प्रसिद्ध और शक्तिशाली थे। इन्होंने उत्कलका राज्य राजराजके श्यालक स्वखरदेवने महेश्वरका मन्दिर दबा बङ्गदेशको भी जीत लिया। सदुगै अनमया नगर बनवाया था। छीन चोड़गहने मन्दार-नरेशको मार भगाया था। शक ११२० में श्य राजराज उत्कलके नरेश सम्भवतः पाईन-अकबरीमें जिस स्थानका माम 'सरकार इये। ये अनियकभीमदेवके औरस और रानो बाघल्ला मन्दारन' लिखा है, वही मन्दार प्रान्त रहा। आज देवोके गर्भ से उपजे थे। इनका उपाधि नाम राजेन्द्र था। कल इसे भीतरगढ़ या भौटागढ़ कहते हैं। चोड़गङ्गने राजराजके सिंहासनारूढ. होते हो मुहम्मद बखू ति- अपना राज्य गङ्गाके उत्तरसे गोदावरौके दक्षिण तक यारके दो सेनापति मुहम्मद शेरान् और अहमद शेरान् बढ़ा लिया था। किन्तु चेदी-शिलालेखके अनु उड़ोसे पर चढ़े, किन्तु अपने प्रभुके वध का समाचार पा सार रत्नदेव राजाने इन्हें नीचा दिखाया। ये बडे लौट पड़े। ३य राजराजने शक ११३३ तक राज्यका धार्मिक थे। इन्हीं को धाज्ञासे पुरोमें जगवाथ सुख उठाया था। देवका मन्दिर बना । चोड़गण के समय विज्ञान शक ११३३ से ११६० तक ३य अनङ्ग भोमदेवने और साहित्यको भी अच्छी उवति हुई। संस्कृत शासन चलाया । वे ३य राजराजके औरस और और तेलगु भाषा का प्रचार अधिक था। शक चाल क्यवंशीया सदगुणा वा मकणा देवी के गर्भ से १०२१ में प्रातानन्द ने भाखती नामक ज्योतिष उत्पन्न हुये थे। विकलिङ्गनाथ उपाधि रहा। उनके सम्बन्धीय ग्रन्थ लिखा। कोई ८० वर्षके वयसमें इन्होंने ब्राह्मण-मन्त्री विष्णु तुममाणो पृथिवीपति और ७२ वत्सर राज्य कर इहलोक छोड़ा था। आज भी यवनोंसे लड़े थे। शक १९६० को १म दृसिंहदेवने चोड़गङ्गके नामका परिचय पुरोके चुडनसाही महले, राज्य पाया । ये पनङ्गभीमदेवके औरस और कटक नगरसे दक्षिणपश्चिम तीन कास चुड़नपुखरौ | कस्त रादेवोके गर्भस उत्पन्न हुये थे। १म नृसिंह तालाब, सारङ्गगढ किले और कटक जिलेके याजपुर देवने राढ़ और वारेन्द्र पर आक्रमण कर यवना को नगरमें मिल सकता है। .. हराया। कोणार्कका बड़ा मन्दिर उन्हों के आदेश शक १०६८में कामाणवने सिंहासन पर बैठ बना था। फिर कोणाकोण वा कोणार्कवाले सूर्या- १०७८ तक वाजत्व किया। ये चोड़गङ्गके औरस लय के भी वेहो निर्माता रहे। १म नृसिंह देवको और कस्त रिकामादिनौके गर्भसे उत्पन्न हुये थे। सभामें रहनेवाले पण्डित विद्याधरने एकावलो नामक उपाधिरूपसे कामाणवको लोग कामार्णव देव, अनन्त अलङ्कारका एक ग्रन्थ लिखा था । शक ११८६में मधु-कामार्णवदेव और अनन्तदेव भी कहते रहे। उनके शासनका अन्त हुआ। शक १०७८ से १०८४ तक राघव राजा बने।। ११८६ से १२००-१ तक १म भानुदेवने राजत्व .. उन्होंने चोडगङ्गके औरस और रविकुलको इन्दिराके | किया। वे १म नृसिंहदेवके औरस और माल- गर्भसे जन्म लिया था। चन्द्रको कन्या सीतादेवीके गर्भसे उत्पन्न हुये थे। शक १.८२ को २य राजराज राजा हुये। ये १म भानुदेवने श्रोत्रिय ब्राह्मणों को भूमि तथा रह चोड़गड़के औरम और चन्ट्रलेखाके गर्भसे उपजे थे। समर्पण कर सैकड़ों दानपत्र लिखे थे। इनका औपाधि नाम अनन्तवर्मदेव रहा। शक | शक १२००-१ से १२२७-२८ तक श्य नृसिंह देव १११२ मे उनका शासन समाप्त हो गया। उत्कलके सिंहासन पर सुशोभित हुये। वे १म __शक १११२ मे ११२० पर्यन्त २य अमिया-भीम | भामुदेवके चौरस और चालक्य-वंशीय जाकज्ञा देवीके वा अनभीमदेवने राज्य किया था। ये घोड़ गर्भसे सम्भूत थे। उपाधि वीरनृसिंहदेव, वीरथी गङ्गके पुत्र और २य राजराजके भ्राता रहे। गोविन्द अथवा श्रीवीरसिंह देव, प्रतापौर श्रीनृसिंहदेव, नामक इनके एक महाबलं बाण मन्त्री थे। श्य वीरश्री. वा. श्रीवोरनरनारसिंहदेव और प्रमन्तवर्म
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