उत्कल (उड़ीसा) नौकापर विष्णु और शिव दोनो जलविहार करते हैं। नावें चल सकती हैं। तालदण्डेको ५२ और मछ- सानयात्राके समय गयेश भगवान् तड़ागमें नहाने गांवकी नहर ५३ मोल लम्बी है। इनसे प्रायः जाते हैं। रामलीला, कालीयदमन और जगन्नाथके सिंचाई होती है। जन्मका उत्सव भी बड़ा है। रथयात्रा जैसी धूमधाम उड़ीसे में प्रतिवर्ष प्रायः साढ़े बासठ इञ्च वृष्टि होती दूसरे समय नहीं होती। है। फिर भी जलके रुक न सकनेसे दुर्भिक्ष पड़ते कृषिमें चावल अधिक चलता है। सूखे टीलों देर नहीं लगती। १८३३-३8, ३६-३७, ३०-४० और और गहरे दलदलोंमें हर जगह उसे बो देते हैं। ४०-४१ ई०को बड़ा सूखा पड़ा और ज्वर बढ़ा था। चावल कई प्रकारका होता है। दिसम्बर जनवरीका फिर १८६६,१८१५ई० को बाढ़ पानेसे करोड़ों रुपयोंकी मार्च-अपरेल, मईजनका जुलाई-अगस्त और वर्षा हानि हुई। चौथाई लोग मर मिटे थे। समुद्र किनारे प्रारम्भका बोया दिसम्बरमें कटता है। सिवा चावल के भी तूफानी पानी चढ़ आता है। उसके नदीको बाढ़से गई, अड़हर, उड़द, नूग, मसूर, मटर, सरसों, मिलने पर जङ्गल और बस्तो दानो डब जाते हैं। सन, तम्बाकू, रूई, ऊख, पान, बाल और अनेक १८८५ ई०को ऐसी ही दशापर कटकमें कितने ही प्रकारका शाकादि भी उपजता है। सरकारी अफसर और उनके बालबच्चे मर गये थे। बालेखर, कटक, पुरी और चांदबाली बड़े बन्दर पशु और सम्पत्तिको अमित हानि हुई। तूफानी हैं। चावल और कपड़ेका व्यवसाय अधिक होता लहरने घण्टोंमें पचासों कोसों तक घर गिरा दिये थे। है। कलकत्तेसे घनिष्ट सम्बन्ध है। कितना ही माल किन्तु १८६६ ई. को जो दुर्भिक्ष पड़ा, उसका दृश्य पाता और कितना हो जाता है। प्रधानतः विलायती इतिहासके वक्षःपर सबसे ऊंचा है। चावल एवं देशी सूत, कपड़ा, बोरा, लोहालङ्गड़, तेल, मसाला, न मिलनेसे बाजार बन्द हो गये थे। रुपयेमें साढ़े तम्बाकू और सोना-चांदी बाहरसे मंगाते हैं। चावल, चारसेर चावल बिकनेसे गरीब आदमी भूकों मरे। चमड़ा, लकड़ी और लाह चालान करते हैं। बाले लोगोंने घास चबा चबाके दिन काटे थे। खरसे चावलका निकाश अधिक होता है। जहाज ___उड़ीसेका जलवायु दक्षिण-बङ्गाल से मिलता जुलता बराबर कलकत्त आया-जाया करते हैं। बङ्गाल है। मार्चसे मध्य जूनतक ग्रीष्म, मध्य जनले अतोबर नागपुर रेलवे उड़ीसाकै प्रधान प्रधान नगरोंको तक वषों और नवम्बरके आरम्भसे फरवरी मास तक पहुंचती है। पुरीमें नमक बहुत बनता है। कटकके शीत ऋतु रहती है। जन, जुलाई और अगस्त मास सोनेका काम प्रसिद्ध है। हैज़ा हुआ करता है। चेचक जनवरीसे मध्य अपरल . यहां रेल और सड़ककी कमी है। कलकत्तेसे तक चलती है। नीच उड़िये कुवाछूतका विचार नहीं मन्द्राज जानेवालो ग्राण्डट्रक रोड (Grand Trunk | रखते और न टोका हो लगवाना चाहते हैं। Road) कछार-जैसे प्रान्तके बीचसे निकली है। इतिहास इसोको एक शाखा कटकसे पुरीको फटी है। सम्बल उत्कलका प्राचीन नाम कलिङ्ग है। महा- पुरको भी कटक और मेदिनीपुरसे सडक लगी है। . भारतके समय वैतरणी नदी-प्रवाहित कलिङ्ग वा बन्दर बड़े जहाजोंके लिये उपयुक्त नहीं। पहले उतकलांश यज्ञीय देश समझा जाता था। उस समय माल जहाजसे पानी में ही नावपर उतरता, फिर कहीं। यहां अनेक मुनि ऋषिके आश्रम रहनेका सन्धान किनारे पहुंचता है। नावें भी बहुत कम मिलती लगा है। बुद्धदेवके समय भी यहां समृद्धि बहुत हैं। बरसातमें माल चढ़ाते-उतारते बड़ा कष्ट पड़ता बढ़ी थी। है। उडीसेको नहर भद्रखसे भागे नहीं बढ़ती। अशोकके पितामह चन्द्रगुप्तके समयसे कलिङ्ग कैदरापाडाको नहरमें कटकसे मारसाघाई तक हो। मौर्यवंशके अधीन रहा। सम्राट अशोकसे कलिङ्ग-
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