पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/१७८

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

उज्जयिनी-उज्जानक १९७ है। स्थानीय सरोवरमें अनेक आश्चर्य घटना लगी। मध्य मध्य हाथ लग जाते हैं। हम समझते-इसोसे रहती है। मुनते-मरोवरपर नागकन्या मध्य मध्य लोग उज्जयिनीको 'रोजगारका सदाव्रत' कहते हैं। पहचती और उपरिभाग नारी तथा निम्रभाग मत्स्यकी ___ नगरके पार्खपर राजा भर्ट हरिको गुहा है। मूर्ति-जैसा रखती हैं।* उन्होंने संसारत्यागके पश्चात् इसोका आकर आश्रय यहां जैनों के भी अनेक मन्दिर देख पड़ते, जिनमें ! पकड़ा था। कोई कोई कहता-इसी स्थानपर भट १. श्वेताम्बरी और दिगम्बरी हैं। कितने ही जैनमठ हरिका प्रामाद था। किन्तु यह सम्भव नहीं। आजकल हिन्दुवोंके अधीन हैं। उनमें जवरेश्वर गुहा में सीधे खड़े होने पर तसे शिर टकराता है। और जैनभञ्जनौखर ही प्रधान हैं। तीन दिक स्तम्भ लगे हैं। उनपर अस्पष्ट मूर्ति खुदी यहां गुजराती ब्राह्मण अधिक रहते हैं। रामस-. हैं। स्थान स्थान पर शिवलिङ्ग पड़े, जिनमें केदार- नेही, दादू, कबीरपन्थी, रामात्, रामानुज प्रभृति सम्प- खर सबसे बड़े हैं। केवल उन्होंको पूजा होती है। दायके लोग भी विद्यमान हैं। प्रायः प्रति वृक्षके वामदिक् अन्तर्गुहामें असितप्रस्तरको दो मूर्तियां हैं। तलपर सतीस्तम्भ खड़ा है। इस प्रस्तरखण्ड देखनेसे एक कुछ ऊपर और दूसरी उसोके नीचे लगी है। ही पहचानते-सतीको कितना'मानते कितना जानते। यहां लोग कहते ऊपर गोरखनाथ और नीचे उनके हैं। ब्राह्मणक्षत्रियादिके वर्णक्रमसे प्रस्तरपर स्त्री शिष्य भट हरि हैं। . पुरुषको मूर्ति बनतो है। ब्राह्मणके गो और क्षत्रियके उज्जर (हिं.) उज्ज्वल देखी । परिचयके लिये अश्व प्रभृति अङ्कित होता है। स्थानीय उज्जानक-काश्मोरके उत्तरस्थित एक जनपद। आज- धार्मिक रमणियों सतीस्तम्भको पूजा करती हैं। कल इसे स्वात कहते हैं। महाभारतके मतसे नगरसे दक्षिण पूर्व दिक् जोग-शहीद नामक एक उज्जानक एक पवित्र तीर्थ है। पर्वत है। लोग कहते-इसीके नोचे राजा विक्रमा “उज्जानक उपस्प श्य आष्टि सेनस्य चामे । दित्यक बत्तीस सिंहासन प्रोथित हैं। पर्वत पर पिङ्गायाथाश्रमे सात्वा सर्वपापैः प्रमुच्यते ॥" ( अनुशासन ५।५०) चढ़नसे नगरको प्राकृतिक शोभा देख पड़ती है। राजा पूर्व काल यह जनपद वितस्ता नदोके पश्चिम विक्रमादित्यके समय उज्जयिनोमें मानयन्त्र रहा। तटतक विस्तृत था। मार्कण्डेयपुराणमें इसका नामः भारतके प्राचीन भौगोलिक उक्त यन्त्र द्वारा उज्जयिनीसे ही प्रथम याम्योत्तरवृत्त खोंचते थे। अकबरके "वेदमन्त्रा विमाण्डब्या: शाल्वनीपास्तथा शकाः। ... . पितामह बाबरने इस यन्त्र की बात लिखी है। किन्तु उजिहानस्तथा वत्सा घोषसंख्यास्तथा खशाः ॥” (५८), आजकल इस यन्त्रका वृत्तान्त कोई बता नहीं महाभारतमें कहा है-कार्तिकेय और वशिष्ठने सकता। समझ पड़ता-प्राचीन उज्जयिनीक साथ इस स्थानपर शान्ति पायी थी। इसके पीछे कशवानं यह भी लप्त हो गया। फिर आज भी यहां जय- नामक इद है। उसमें प्रचुर कुशेशय उपजता है।। सिंहका मानन्दिर विद्यमान है, किन्तु अवस्था । (वन १३० अ०) अच्छी नहीं। कौन उसको उद्दार करेगा! जयसिंह देखो। पूर्व समय इस स्थानपर बौद्ध धर्म भी बहुत प्रबल प्रत्नतत्ववितके देखने योग्य भी अनेक वस्तु हैं। यहां रहा। फाहियान, सुङ्गायन, यअन् चुयङ्ग प्रभृति चीना ग्रीक, वालिक, शक और देशीय नरपतिमाके समय परिव्राजकोंने देखकर इस स्थानको बौद्धधर्म-सम्पर्कीय की प्रचलित प्राचीन मुद्रा मिली हैं। आज भी प्राचीन सकल कथा लिखो है। सुनयनने कहा-यह देश उज्जयिनीकी वनस्थली ढूंढ़ते ढूढते होरा, अकोक, | उत्तरमें मुलिं पर्वत और दक्षिणमें भारतसे वर्ण तथा रौप्यमय मुद्रा और स्त्रीगणका अलङ्कार | मिलित है। जलवायु उष्ण और मनोरम है। राज्य • Journal As. Soc Bengal, Vol. vi. p. 820.2 प्रायः शत क्रोश विस्तृत है। अधिवासी और उपादेय Vol III. चातुर 45