१७५ उज्जयिनी स्कन्द, मत्स्य, नारसिंह प्रभृति पुराणों में महाकाल- शिवलिङ्गका उल्लेख मिलता है। इसी शिवलिङ्गके | दूरसे यात्रियोंके नयनोंको खींच लेता है। कारण उज्जयिनीको पीठस्थान कहते हैं। महाकाल उज्जयिनो में केदारखर नामक शिवका एक अपर के मन्दिर में दिनरात हतका प्रदीप जलता है। प्रति क्षुद्र मन्दिर है। अवन्तिखण्डके मतमें इस शिवलिङ्गका सोमवारको मन्दिरके सेवक पञ्चमुखी मुकुट उठा महा दर्शन करनेसे महापुण्य मिलता है। लिङ्गको उत- समारोहसे कुण्डाभिमुख जाते हैं। उस समय मन्त्र पत्तिके सम्बन्धमें एक उपाख्यान भी है,-'किसी 'पाठ, वाद्यरव और साधारण कळक जयजयकार हुपा। समय हिमशृङ्गवासी देवगरने महादेवसे जाकर कहा करता है। दोनों पार्खसे पण पुच्छका चमर था-देवदेव! दारुण हिमने हमें बहुत घबरा दिया ढालते चलते हैं। कुण्डपर पहुंचनेसे प्रधान पुरोहित है। हम चिरदिन उसे सह नहीं सकते। आप मन्चपाठपूर्वक मुकुट धोते हैं। फिर महासमारोहसे वही उपाय करें, जिसमें हम इस दुःखसे दूर रहें।' मन्दिर में उसे लाके महाकालको पहना देते हैं। उस | उस पर महादेवने हिमालय पुछवा भेजा,-चिरकाल समय महाकाल कोषय वस्त्र और मणिमाणिक्यादिसे | ऐसा.दारुण हिम पड़नेका कारण क्या है? हिमा- सज भक्तोंको पूजा लेते हैं। महाकाल-मन्दिरके समस्त लयने प्रार्थनापूर्वक कहा-'हमारे अपर आप पाकर कार्यका भार तैलङ्गी ब्राह्मणों और बाहोरी नामके | रहिये। हम हमेशा आपको पूजा करेंगे। पाठ लोगोंपर न्यस्त है। इस लिङ्गका दूसरा नाम अनन्त मास हिमका प्रभाव भी कम पड जायेगा। महादेव • कल्पेखर है। गिरिशृङ्गपर एक उष्ण कुण्ड के निकट जाकर टिके। महाकाल शिवका मन्दिर अतिवृहत् है। इस वहां योगिऋषि केदारेश्वर नामसे उन्हें पूजने लगे। सुन्दर मन्दिरको देखनेसे प्राचीन हिन्द शिल्पिगणक काल पाकर पृथिवी मानवके पापसे कलुषित हुई। नैपुण्यका कितना ही परिचय मिलता है। देवालयको | इसलिये देवादिदेव महादेव भी अन्तहित हुये। . रक्षा और महाकालको सेवाकेलिये अनेक सम्भान्त एकदिन कतिपय ऋषि केदारखर दर्शन करने गये थे। • • व्यक्तियोंने वृत्ति वांध दी है। उसमें संधिया प्रायः किन्तु केदारेश्वरको वहां न देख वे घबराये और रो रो -३००), देवासके राजा ५०१ या ६०), गायकवाड़ १२१ कर आंसू बहाने लगे-'हाय! हमें वेदयेखर कहां और होलकर रु. मासिक देते हैं। देख पड़ेंगे! क्या दयापूर्वक वे हमें दर्शन न देंगे ? ____ महाकालका मन्दिर बने तीन शत वत्सर हुये। परमदयालुके व्यतीत हमें कौन शान्ति प्रदान करे फिरिस्ता नामक मुसलमानी इतिहासमें लिखा है- गा! उसी समय देववाणी हुई–'महाकाल वनमें यह मन्दिर सोमनाथके समतुल्य है। इसके वृहत् जावो। वहां शिप्रा नदीपर तुम्हें केदारेश्वरका दर्शन -स्वर्णस्तम्भ मणिमाणिक्यसे खचित थे। गर्भग्रहके मिलेगा।' अनन्तर ऋषि उल्लासपूर्ण हृदयसे उज्ज- मध्य एक सामान्य आलोक जला देनेसे पसामान्य यिनीको आये थे। वे शिप्रा नदीके तौरपर पहुंच हीरकमें प्रतिफलित होता है और समस्त मन्दिर मानो प्रेमभरसे देवादिदेवका स्तव करने लगे। उस समय सूर्यालोककी भांति चमकने लगता है। पसंख्य रन स्रोतखतीके वक्षपर एक शिला उतरा उठी थी। राजिपूर्ण मन्दिरको अनुपम शोभा अब पूर्वमत देख ऋषिगणने उसोको केदारेश्वरका लिङ्ग समझ सादर नहीं पड़ती। पलतमास बादशाह समस्त मणिमाणिक्य | ले लिया। अनन्तर कुरुपाण्डवके युद्ध में उज्जयिनी रबादि लूट मन्दिरको विस्तर क्षति पहुंचा गये हैं। पर भी पापने हाथ मारा। केदारेश्वर पुनः छिप उस समय पण्डोंने अशेष यबसे लिङ्गमूर्तिको गुप्त भावमें गये। भीमने एक ऋषिसे परामर्थ लिया था-प्रब दूसरी जगह घटाकर बचाया था। प्रायः गत वत्सर केदारेखर किसप्रकार मिलेंगे। ऋषिने भीमसे पैर ये समचन्द्र कापू नामक एक व्यखिने मन्दिरको पुनः। फैलाकर खड़े रहने कौर राज्य समस्त वृष उमके
पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/१७६
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