उब्जयन्त-उज्जयिनी २७३ व्यक्ति पत्र प्रस्तरका मन्दिर बनाता है. वह पत्र सहस। नेमिनाथका मन्दिर अति प्राचीन है। खानीय थिला वर्षे निरामय वर्गका वास पाता है। रैवतक लिपिसे समझ पड़ता है-१२७८ ई०को इस मन्दिरका सबिकट दो कोस विस्तत अन्तर्यक्षेत्र है। यह संस्कार हा था। दूसरा भी एक प्रति वृहत् प्राचीन क्षेत्र अधिकतर पुण्यप्रद है। इसके जल में प्राणीका मन्दिर है। उसे वस्तुपाल और तेजोपाल उभय अस्थि गिरनेपर उसी क्षण विलीन होनेसे इसका नाम चाताने बनवाया था। जैनशास्त्रके मतमें इस तीर्थका विलीयक पड़ा है। यहां अनेक संसारमुक्त सबवासी दर्शन करनेसे अक्षय स्वर्ग मिलता है। गिरनार देखो। रहते हैं। भट्र ऐसा कह कर चलते बने। पीछे - पूर्व समय इस उज्जयन्तमें बौह भी तीर्थ करने राजा और रानी वस्त्रापथको गये। वे कार्तिक | आते थे। बौदराज अशोकको शिलालिपि इस गिरि- मासको पूर्णिमाको यहां पहुंचे थे। नहाकर राजाने | पर उतकीर्ण थी। अनुशासनके पत्र पर ग्रीक और भवनाथ और दामोदरका दर्शन किया। उसो | बालहिक राजगणका नाम मिलता है। ई. के ७ वें समय स्वर्गमे रथ पाकर उनके लिये वहां लग गया। शताब्दमें चीन-परिव्राजक युएन-चुयङ्ग इस गिरिको राजा और रानी दोनों स्वजनसह उसपर बैठ निरामय देखने आये थे। उन्होंने इसके विषयमें लिखा है- वर्गको चले गये।" 'उज्जयन्त ( जह-चेन-तो) गिरिपर (बौद्धोंका ) प्रभासखण्ड में वस्त्रापथके देखने योग्य स्थान भी सङ्घाराम है। स्थानीय आश्रमादि पर्वतका पाच वर्णित हैं-वस्त्रापथसे पश्चिम जनविष्क गिरि है। खोदकर बनाये गये हैं। पर्वत वनसे परिपूर्ण है। इस स्थानपर भीमने उनक नामक असुरको मारा था। कई नदी इसके शिखरसे निकली हैं। सिद्ध पाते अनेक शिवलिङ्ग प्रतिष्ठित हैं। तीर्थयात्रीको ‘इस जाते हैं। आत्मज्ञानी ऋषि एकत्र रहते हैं। किन्तु स्थानका कार्य चुका मङ्गलगिरिसे पश्चिम प्रवाहित उक्त परिव्राजकका वर्णित सकाराम. अब देख नहीं 'गङ्गाके स्रोतमें नहाना चाहिये। फिर गङ्गेश्वरकी पड़ता। कहते हैं-७२४ ई में अरबोंने भारतके पूज श्राहादि करना उचित है। उसके पीछे बारी भीतर घुस उज्जैनको जीता था। यह सम्भवतः उज्जयन्त बारी सिद्धेश्वरसे पश्चिम स्थित इन्द्रेश्वर, और मङ्गल या गिरनारका जूनागढ़वाला पर्वत होगा। किन्तु गिरिसे पश्चिम यक्षवनस्थ यक्षेश्वरीको दर्शन कर पूजने चचनामे में लिखा है-उमैयद अलवलीदके समय का विधान है। पीछे रैवतक पहुंचना चाहिये। (७०५-७१५ ई.) कासिमके पुत्र मुहम्मदने जयपुर यहां रेवती और भीमकुण्डमें नहा दामोदरका दर्शन और उदयपुर विजय किया। इससे मालूम होता करना उचित है। दामोदरके दर्शनान्त भवनाथ आते है-कदाचित् अरब मध्यभारतमें उज्जैनतक बढ़ पाये हैं। वहां मृगी प्रभृतिमें नहा उज्जयन्त गिरिपर चढ़ना थे। क्योंकि राजस्थानमें करनल टडने उज्जैनको चाहिये। पोछे अम्बा देवी, हस्तिपद, रसकूपिका, चित्तौरका एक सूबा बताया है। तप्तकुण्ड, गोमुख, गङ्गा, प्रद्युम्न प्रभृतिके दर्शन बाद | उज्जयिनी-मध्य भारतान्तर्गत मालवप्रान्तको प्राचीन तीर्थयात्रीका कर्तव्य पुण्यकर्मादि होना उचित है। राजधानी। यह शिप्रा नदोके दक्षिणकूल अक्षा. .: जैन भी उज्जयन्तको अपना अतिपवित्र तीर्थ । २३. ११ १०". उ० और द्राधि० ७५.५० ४५ मानते हैं। प्रति वर्ष हजारों जैन यहां तीर्थ करने पू० पर अवस्थित है। हिन्दीमें. लोग उज्जैन आते हैं। तीर्थहरों के अनेक मन्दिर बने हैं। उनमें कहते हैं। आजकल उज्जयिनी म्वालियर राज्यक अधीन है। यहाँसे बहुत अफीम बाहर भेजी अन्त व कर्णकुजसे पूर्व स्वर्णरेखा नदीसे उज्जयन्त गिरि पर्यन्न जाती। विस्तृत है। यहां दामोदर, भवनाथ, विच, खर्यरेखा, ब्रह्मकुण्ड, ब्रह्म- अर, गले वर, कालमेष, इन्द्र बर, रेवतक, उज्जवन्त, रवीण, कुम्भौ- यह एक पति प्राचीन नगरी: और अवन्तिराज्यको र, भीमकुम र भौमिश्रर नोर्थ है। (प्रभास ) | विख्यात राजधानी है।' महाभारत के समय यह शहर Vol III. 44
पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/१७४
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