१७२ उज्जयन्त बतलाइये, किस प्रकारके कार्यसे मानव आपको भोज नामक एक राजा रहे। वे वृद्ध वयसमें पूजता और कैसे आचरण तथा कैसी उपासनासे पुत्रपर राज्यभार डाल स्त्रोके साथ गङ्गातीर पहुंचे। सन्तुष्ट करता है। शिवने कहा,-जो जीव नहीं कुछ दिन पौछे भद्र नामक एक मुनि कतिपय मारता, सर्वदा सत्य वचन बोलता, कभी कुकर्ममें ऋषि साथ ले उसी नदी तौर गये। पूतनीरा गङ्गामें नहीं जाता और युद्धक्षेत्रमें अकातर आगे पद बढ़ाता, नहा मुनिवरने ध्यान लगाया था। उसी समय राजा वही मुझे रिझाता है। इसी प्रकार कथावार्ता होते भोजने उन्हें देख लिया। दर्शन मात्रसे ही भोज समय ब्रह्मादि देव कैलासमें भा पहुंचे। उनमें राजाके हृदय में भक्ति टपक पड़ी। उन्होंने निकट विष्याने शिवको लक्ष्य कर कहा,-'पाप सर्वदा हो पहुँच निज आश्रम चलनेके लिये मुनिको मनाया था। दैत्यादिको वर देते हैं, जिसके प्रभावसे वे नियत मनुष्य वे भद्र राजाके वाक्यसे सम्मत हो उनके पाश्रम गये। पर अनिष्टाचरण करते और मेरे पालन कार्य में भोजने स्त्रीके साथ मुनिवरको परिचर्या कर पूछा- व्याघात डालते हैं। पृथिवीको अब में पाल नहीं। 'मुनिवर ! मानव संसारके प्रलोभनसे भूल जन्म और सकता। मेरा पद कौन लेगा!' शिवने उत्तर मरणके चक्रमें घमता फिरता है। भगवन् ! आप क्या दिया,-'मैं आशुतोष इं। अल्प सेवासे हो सन्तुष्ट दयापूर्वक बता सकते हैं-कैसे मानव नित्य शान्ति हो जाता है। मेरा यह स्वभाव छट नहीं सकता। का लाभ उठाता है? मुनिने उत्तर दिया-'प्रथिवीपर आपको बुरा लगता है। इसीसे मैं चल देता| गङ्गा प्रभृति अनेक पुण्य तोया नदी और विष्णु एवं इं।' यह कहकर शिव कैलाससे अन्तर्धान हुये। शिवके तीर्थ हैं। निर्दिष्ट समयपर नदीमें स्नान और उस समय पार्वती बोली-'मैं शिवके व्यतीत एक | तीर्थमें देवदर्शन तथा दान करनेसे अशेष पुण्य क्षण भी नहीं ठहर सकती।' पीछे देवता पार्वतीके | मिलता है। किन्तु वस्त्रापथतीर्थ यात्रीको नित्य साथ शिवको ढंढने निकले। उधर शिव वस्त्रापथमें अनन्त सुखमय स्वर्ग देता है। एकदा मैं वस्त्रापथके अपने वस्त्र छोड़ अदृश्य भावसे रहने लगे। पार्वती और दश नको गया था। वहां विष्णु रहते हैं। उन्होंने देवता सब मिलकर ढूढते दृढते वस्त्रापथमें श्रा पहुंचे मुझसे कहा था-सकल तीर्थ दर्शनके निमित्त तथा थे। विष्णु गरुड़से उतर रैवतक पर्वतपर टिके । परिश्रमसे क्या प्रयोजन है। वस्त्रापथमें दामोदर देवका पार्वतीने उज्जयन्त गिरिको चूडापर विश्राम लिया। दर्शन और दामोदरकुण्डमें स्रान करनेसे ही सर्व इसी समय नागराज और गङ्गादि नदीसमूह पाता- तीर्थों का फल मिलजाता है। विष्णु के आदेशानुसार मैं लसे यहीं पाये। देवगण भी निज निज मनोनीत | उसी तीर्थका दर्शन करने जाता है। अनन्तर राजाने स्थान में बैठ गये। पार्वती उज्जयन्त-गिरिके शृङ्गसे शिव पूछा-भगवन् । वस्त्रापथ क्षेत्र कहां है ? वहां स्त्रोत्र गाने लगी थीं। आशुतोष फिर छिप न सके, कौन कौन पर्वत, कौन कौन नदी और कौन कौन वन पार्वतोके स्तवसे सन्तुष्ट हो सर्व के समक्ष देख पड़े। हैं। मुनिने बताया-उस क्षेत्रको चारो दिक समुद्र देवगणने उनसे कैलास चलनेका अनुरोध किया। है। अनेक नगर बने हैं। भवनाथके निकट उज्ज- शिवने कहा, 'मैं कैलास जा सकता है। आप | यन्त पर्वत है। उसके पश्चिम रैवतक विद्यमान है। और पार्वतीको इसी वस्त्रापथमें रहना पड़ेगा। देव- इसी पर्वतके शृङ्गसे स्वर्णरेखा नदी निकली है। गणने वैसा ही किया था। शिव अपना अंश छोड़ पातालसे स्वर्ण रेखाको उत्पत्ति है। शाम्ब, प्रद्युम्न प्रभृति कैलासको चल दिये। उसी समयसे विष्णु रैवतक | यादव सस्त्रीक इस क्षेत्र में रहते हैं। दामोदरके निकट और-पार्वती अम्बा नामसे उन्नयन्त गिरिके शृङ्गपर रैवतक-कुण्ड है ; उसे रेवतीने बनवाया था। इसी अवखित हैं। स्थानपर ब्रह्मकुण्ड नामक दूसरा भी कुण्ड है। वस्त्रापथमाहामाका उपाख्यान इस प्रकार है- । दामोदर इस कुण्ड में नहाने आते हैं। इस क्षेत्र में जो
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