उजाला-उज्जयन्त १०१ "२ प्रकाशित कराना, चमकाना। ३ परिष्कार करना, उज्जयन्तय शिखरी चिन' सिद्धिको महान् ॥ २१ सफाई लाना, रगड़ना, मांजना। पुण्ये गिरौ मुराष्ट्र षु मृगपचिनिषेविते । उजाला (हिं. पु०) १ दिन, धूप, चमक । २ दीप्ति, उच्चयन्ते म तप्ताङ्गो नाकपृष्ठे महीयते ।" २३ ( वन ८८०) रौशनो। ३ महिमा, नाम, गहना। ४ एकमात्र समुद्रतीर सुराष्ट्र के निकट देवगणका प्रभासतीर्थ पुत्र, एक लौता बेटा। है। यहां पिण्डारक तीर्थ और आशु सिद्धिदायक "उजाली (हिं. स्त्री०) चन्द्रज्योत्स्ना, चांदनी। उज्जयन्त पर्वत परिलक्षित है। मृग और पक्षियोंसे 'उजालेका तारा (हिं. पु०) शुक्र, सवेरेका नक्षत्र । समाकुल सुराष्ट्र देशके पवित्र उज्जयन्त पर्वतपर तपस्या उजास, उजाला देखी। कर मनुष्य स्वर्गलोकमें पहुंचता है। स्कन्दपुराणके प्रभासखण्डमें कहा है- उजियर, उजला देखो। "सोमनाथस्य सान्निध्ये उज्जयन्तो गिरिमहान् । उजियरिया, उजाला देखो। तस्य पश्चिमभागे तु रैवतक इति स्म तः । उजियार, उजला और उजाला देखो। उज्जयन्ते पद गत्वा ततः खर्ग निरामयः । उजियारना, उजालना देखो। ऐरावतपदाक्रान्ता उच्चयन्तो महागिरिः। उजियारा, उजाला पौर उजला देखो। सुखाव तोयं बहुधा गजपादोड़वं सुचि। उजियारो, उजाली देखो। उज्जयन्त गिरिवर मैनाकस्य सहोदरम् । उजियाला, उजाला देखो। मुराष्ट्र देश विख्यातं युगादौ प्रथमस्थितम् ।" उजीता, उजाला और उजला देखो। उक्त वचनसे उज्जयन्त गिरिका माहात्मा सूचित होता है। पर्वतके पास हो सुपवित्र वस्त्रापथक्षेत्र उजीर (हिं. पु.) वजीर, मन्त्री। उजबा (हिं.) अज वा देखो। है। इस स्थानको भी आजकल गिरनार कहते हैं। उजनी (हिं. स्त्री०) उज्जैन। उज्जयिनी देखो। स्कन्दपुराणमें लिखा है-भारतवर्षके सकल तीर्थो में प्रभास श्रेष्ठ है। प्रभासतौथैकी अपेक्षा वस्त्रापथको उजेर, उजाला देखो। उजरा (हिं. पु.) १नतन वृषभ, नया बैल । जब- समधिक पुण्यप्रद बताया है। • “परं देव त्वया पूर्व प्रभामं कथितं मन । तक बैल गाडी वग रहमें जोता नहीं जाता, तब- तस्मादप्यधिक प्रोक्तं चैवं वस्त्रापथं त्वया " (प्रभासखण) तक उजैरा कहलाता है। २ उजाला, प्रकाश । वस्त्रापथ-क्षेत्रको सीमा इस प्रकार निर्दिष्ट है- (वि.) ३ उजला, साफ। "उत्तरे तु नदो भद्रा पूर्वस्यां योजनद्दयम् । उजेला, उजला और उजाला देखो। दक्षिणे च वलिस्थानमुजयन्ती नदीमनु । उज्जन (सं० क्लो०) स्थल वा बलिष्ठ पड़नेका भाव, अपरस्यां परं नद्योः सङ्गानं वामनात् पुरात् । जिस हालतमें मोटे या ताकतवर रहें। एतद्दस्त्रापय क्षेब' भुक्तिमुक्तिप्रदायकम् । उज्जयनी (सं० स्त्री०) अवन्ती। उज्जयिनी देखो। क्ष वस्य विस्तरो ज्ञे यो योजनानां चतुष्टयम् ।” (प्रभासखण्ड ) उज्जयन्त-काठियावाड़के अन्तर्गत एक पवित्र पहाड़। उत्तर भद्रानदी, पूर्व एवं दक्षिण दो योजन अवधि इसका वर्तमान नाम गिरनार है । यह जूनागढ़से प्रायः / विस्तृत वलिस्थान, उसोके पश्चात् उज्जयन्ती नदी और ५ कोस पूर्व पड़ता और अक्षा० २१°३१३०" तथा पश्चिम वामनपुरसे उभय नदीके सङ्गम पर्यन्त स्थानमें द्राधि० ७०. ४२° पू०पर अवस्थित है। अतिप्राचीन भुक्तिमुक्तिप्रद वस्त्रापथ-क्षेत्र है। इसका विस्तार चार कालसे यह पर्वत हिन्दुवों और जैनोंका पुण्य तीर्थ | योजन है। प्रभासखण्ड में वस्त्रापथको उत्पत्तिका माना जाता है। महाभारतमें लिखा है- इसप्रकार उपाख्यान है- "प्रभासचोदधौ तौर्य विदशानां युधिष्ठिर । ___ एक दिन कैलासमें शिव और पार्वती दोनों बैठे तब पिण्डारक माम तापसाचरित शिवम् । थे। पार्वतीने शिवसे पूछा,-प्रभो! मुझे दया
पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/१७२
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