उच्चार्य-उच्चै?ष किया या कहा हुआ, जो बोला गया हो। २ मूलमूत्र । जातिसे बड़ा होता है। हिन्दुस्थानमें इसे घुरघुरा युक्त, बराज से भरा हुआ। या भोंगर कहते हैं। झौंगर देखो। उच्चार्य (सं० वि०) उत्-चर्-णिच्-त्यप्। १ उच्चारण- महर्षि सुश्रुतके मतमें यह विषाक्त कीट है । इसके योग्य, तलफ फुजके काबिल। (अव्य.) ३ उच्चारण दंशनसे वायुजन्य रोग उपजता है। (सुश्रुत कल्पस्थान) करके, कहकर। उच्चड़ (सं• पु०) उव्रता चड़ा यस्य, डस्य लत्वम् । उच्चार्यमाण (सं०वि०) उच्चारण किया जानेवाला, १वजोधमुख कूर्च, ध्वजके उपरिभागका वस्त्रखण्ड, जो कहा जा रहा हो। अण्डे के ऊपरी हिस्स का फहरानेवाला कपड़ा। उच्चावच (सं० वि०) उदक् उत्कष्टश्च पवाक निकृष्टच्च, २ध्वजके उपरि भागपर बांधा जानेवाला एक निपातनात् साधुः । मयूरव्यंसकादयश्च । पा २।१।७२ । १ विविध, | अलङ्कार, झण्डे के ऊपरी हिस्म का एक गहना। नानाप्रकार, मुख, तलिफ। २ असमान, नाहमवार, उच्चूल, उच्चड़ देखो। जो बराबर न हो। ३ उच्चनीच, भलाबरा। उच्चैः (सं० अव्य०) १ उव्रत-रूपसे, ऊंचे। २ पत्यन्त, उच्चिङ्गट (सं० पु०) १ढणगड़-मत्स्य, किसी किस्मका निहायत, बहुत । ३ उच्च स्वरपूर्वक, बुलन्द आवाजमें । केकड़ा। २ कोपनस्वभाव, गुस्मावर आदमी।३ पतङ्ग- उच्चैःकर (सं० त्रि०) तीक्ष्ण-स्वरित बनानेवाला, जो विशेष, किसी किस्मका घुरघुरा, एक झोंगर। लहजको जोरसे अदा करता हो। उच्चिटिङ्ग (स.पु०) उच्चिटङ्ग, एक भोंगर। यह उच्चैःकुल (सलो०) १ उन्नत वंश, ऊंचा खान्दान। कौड़ा तीन चार प्रकारका होता है। एक जातीय (त्रि०) २ उव्रत वंश-सम्भूत, ऊ'चे खान्दान्वाला। ( Acheta domestica ), नगर, विशेषतः पल्लि- उच्चःशिरस् ( स० त्रि०) उच्चैरुवतं शिरोऽस्य । उबत- ग्राममें ही अधिक रहता है। देखने में कोमल है। मस्तक, महत्तर, ऊंचे दरजेवाला । इसे उष्णस्थानमें रहना अच्छा लगता है। उच्चिटिङ्ग उच्चैःश्रवस् (सं० पु.) १ इन्द्रका घोटक या घोड़ा। ग्रीष्मकालमें निकलता है। शीत पड़ते ही यह निज | समुद्रमन्थनसे इसको उत्पत्ति है। इसका कान खड़ा का पाश्रय लेता है। उष्णता न मिलनेसे | और बोल बड़ा होता है। वर्ण व त है। मुखको उच्चिटिङ्ग मृतवत् पड़ा रहता है। यह निशाचर संख्या सात बताते हैं। (त्रि.)२ बधिर, बहरा, जो होनेसे सन्ध्याके बाद आहार ढूढ़ने निकलता | कम सुनता हो। है। किन्तु ग्राम्य उञ्चिटिङ्गको अपेक्षा वन्य अथवा उच्चैःश्रवस, उच्चैःश्रवस् देखो। क्षेत्रज ( Acheta campestris) बहुत बड़ा और उच्चैश्रवा, उच्चैःश्रवस देखो। देखने में काली रौशनायी-जैसा होता है। यह सात- | उच्चैःस्थान (स.ली.) १ उन्नत स्थान, ऊंची जगह। आठ हाथ नीचे मट्टीमें गत बनाता है। रात्रिकालको| (त्रि.) २ उन्नत पदाधिकारी, ऊंचे दरजे या खान- गर्तके मुखपर बैठ प्रथम पल्प अल्प और पश्चात् | दानवाला । प्रणयिनीके आकर मिल जाने से साथ-साथ उल्लासमें | उच्चैःस्थय ( स० क्लो०) दृढ़ता, मजबूती (चाल प्राण भर बोलता है। इसका स्वर दूरसे मन लगाकर | चलनको)। सुनने पर अति मिष्ट लगता और सङ्गीतको नाना उच्चैःस्वर (सं० पु.) उन्नत शब्द बुलन्द आवाज़। प्रकार ध्वनिका भाव जताता है। एक-एक स्त्री प्रायः (त्रि.) २ उन्नत शब्द निकालनेवाला, जो बुलन्द दो सौ डिम्ब देती है। डिम्ब फूटनेपर बच्चेका पाकार आवाज़ लगाता हो। प्रायः मध्यमवयस्क उच्चिटिङ्गकी तरह रहता है, केवल उच्चैर्घष्ट (म० क्लो०) उच्चस्-घुष् भावे त। महारव, पक्षही नहीं निकलते। शोर, गुलगपाड़ा। एक जातीय दूसरा उच्चिटिङ्गभी है। यह उक्त उभय | उच्च?ष (वै• त्रि.) उव्रत खरको घोषणावाला।
पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/१६३
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