उगिलना-उग्रचारिणी १५५ उगिलना, उगलना देखो। उयकाण्ड (सं० पु.) उग्रं काण्डो यस्य, बहुव्री। उगिलवाना, उगलवाना देखो। । १ करवेल्लक, करेला। २ काण्डबल्ली, करेलेको बेल । उगिलाना, उगलाना देखो। उग्रगन्ध (सं० लो०) उग्रो गन्धो यस्य, बहुव्री। उग्गाहा (हिं० पु.) उद्गाथा, गौति, एक प्रकार- १हिङ्ग, होंग। (पु.) २ शुक्लरसोन, लहसुन । का आर्या छन्द। इसके विषममें द्वादश और सम | ३ कटफलवृक्ष, कायफल। ३ रक्तरसोन, प्याज। चरणमें अष्टादश मात्रा होती हैं। जगणका प्रयोग ४ अजेक वृक्ष, बबई। ५ चम्मक, चम्पा । (त्रि.) अग्राह्य है। ६ उत्कट गन्धयुक्त, कड़ी खुशबूवाला। उग्र (सं० पु०) उच्यति क्रोधन सम्बध्यते, उच-रक उग्रगन्धा (सं० स्त्रो.) उग्रगन्ध स्त्रियां टाय्। १ वन गश्चान्तादेशः। ऋच्चे न्द्रारव्रजविप्रकुबनुव्रतुरखुरभट्रोग:भेरमेरडक्रशक्त यवानी, अजवायन। २ अजमोदा, अजमोद । ३ बचा, गौरवक्रे रामाला: । उण् ।२८। १ शिव, महादेवको वायु- बच । ४ महाभरीवचा, कुलींजन। ५ किलिका, नक- मूर्ति। २ क्षत्रियके वीर्य और शूद्राके गर्भसे उत्पन्न छिकनी। जातिविशेष । यथा- उग्रगन्धिका, उग्रगन्धा देखो। "चवियात् शूद्रकन्यायां कराचार-विहारवान् । उग्रगन्धिन (सं.वि.) उतकट गन्ध विशिष्ट, तीखो आवशूद्रवपुजन्नुरुग्रो नाम प्रजायते ॥” (मनु १०१६) खुशबूवाला। इस जातिके लोगोंका कार्य गर्तस्थित गोहको उग्रगन्धी, उग्रगन्धा देखो। मारना और पकड़ना है। ३ पूर्व फाल्गुनी, पूर्वा- उग्रचण्डा (सं० स्त्री०) उग्रा चण्डा कोपना स्त्रो, षाढ़ा, पूर्व भाद्रपद, मघा और भरणी नक्षत्र । कर्मधा । १ भगवतीको एक मूर्ति । पाश्विन मासको ४ शोभाजन वृक्ष, सहजन। ५ केरलदेश, मलबार। कृष्ण-नवमीको कोटि योगिनीके साथ यह अष्टादशभुजा ६ खनामख्यात दानवविशेष। 'वेगवान् केतुमानुयः सोयव्ययो | मूर्ति प्राविर्भूत होती है। यथा,- • महासुरः।' ( हरिवंश आदि ३६३ ५०) ७ धृतराष्ट्र के एक पुत्र । "उग्रचण्डा तु या मूतिरष्टादशभुजाऽभवत् । ( भारत पादि ११७ १०) ८ नरेन्द्रादित्य नामक काश्मीर सा नवम्यो पुरा नष्णपक्ष कन्यां गते रवी। गजक गुरु । ८ विष्णु । (भारत अनु० १४६ १०) (त्रि०)। ! प्रादुर्भूता महाभागा योगिनो कोटिभिः सह।" (कालिकापु० ५६-६० अ०) १० उत्कट, मर्म । ११ यष्टि प्रभृति धारण करनेवाला, मूतिने दक्षका यज्ञ भन किया था। आषाद जो लकड़ी रखता हो। १२ अतिशय दारुण कर्म मासको पूर्णिमा तिथिको दक्ष हादश वर्षमें निष्पव करनेवाला, जो खूखार काम करता हो। होनेवाला यन्न करने लगे थे। इस यन्नमें सकल हो "चिकित्सकस्य मृगयो क रस्थोच्छिष्टभोजिनः । देवता बुलाये गये। किन्तु दचने कपाल-मालाधारी उद्यान्न स्तिकानञ्ज पर्याचान्तमनिद शम् ॥” ( मनु ४।२१२) समझ शिवको और कपालीको पत्नी होनेसे निज कन्या (को०) १३ वत्सनाभ नामक विष, बच्छनाग। सतीको भी निमन्त्रण दिया न था। इसीसे सतीने १४ शेवसम्प्रदाय विशेष। इस सम्पदायके लोग बाहु अतिशय क्रोधमें आकर प्राण छोड़ा। देहत्यागके पर डमरु पहनते हैं। १५ तीर्थ विशेष । “उय कनखलव अनन्तर सतीने अपना रूप बदल कोटि योगिनीके केदार भैरय तथा ।” (रेदाखरू २ अ०) १६ क्रोध, गुस्सा। साथ उग्रचण्डा मूर्ति बनायो और शिव तथा उनके अनु- 'उग्रक (सं० पु.) नागविशेष। चरको ले यज्ञमें धलि उड़ायी थी। ( कालिकापुराण) उग्रकर्मन् (सं० वि०) उग्रं कर्म यस्य बहुव्री । २ दुर्गाका एक पावरण । हिंस्रस्वभाव, बेहरम, कड़ा काम करनेवाला। उग्रचय (सं० पु०) उत्कट अभिलाष, जोरको खा- २ प्रापिहिंसाकारी, मार डालनेवाला। ३ खल, बद- हिश, बड़ी चाह । -माथ। . .. उग्रचारिणी (सं० स्त्रो०) दुर्गा देवीका एक नाम । .... ..
पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/१५६
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