ईसाई करनेका अधिकार नहीं रखता। इस समाजको द्वितीय दलने फिर तक उठाया था,-ईसाका देह प्रति दशम वर्ष पोपसे धर्मराज्यको प्राभ्यन्तरिक सृष्ट है या नहीं ? 'अकतिस्ततोई' (Aktistetoi) अवस्था बताना पड़ती है। अर्थात् असृष्टिवादीने कहा-सृष्ट नहीं। 'किष्टोलट्रिष्ट' याक बी या जाकोबाइट (Jacobite) सम्प्रदायके (Kistolatrist) अर्थात सृष्टिवादीने प्रमाण करके देखा .. लोग पहले आदि-सिरीयक समाजका मत मानकर दिया-हां मुष्ट है। - चलते थे। याकूब-बरदाई (Jacobus Baradaeus) इन लोगोंमें फिर 'अग्नितोई (Agnetoi) नामक नामक एक सिरीयक यति इस सम्प्रदायके थे। उन्हीं के तीसरा दल निकला था। उसने प्रचार किया,- नामपर यह सम्प्रदाय याकूबी कहाया है। इसका ईसा मानव नहीं, सर्वशक्तिमान् थे। १६० ई.को पूर्वनाम मोनोफिसाइट (Monophysite) अर्थात् एक एकप्रकृतिवादीमें अस्कुनगेश ( Askunages ) नामक प्रकृतिवादी है। मोनोफिसाइटोके मतसे ईसाकी प्रकृति एक व्यक्ति और उनके पीछे फिलोपोनस (Philoponus) एक ही रही, मानवप्रवति ही क्रमसे दैवी प्रकृति बन | नामक किसी पण्डितने घोषणा की, ईश्वर, ईसा गयो। नेष्टोरियास के मत विरुद्ध प्रथम यह मत और दिव्यात्मा तीनो अलग-अलग स्वतन्त्र हैं। किन्तु निकला था। यूटिकेस्का मत उठनेपर कालसिडनको | इस मतको एकप्रकृतिवादीने ईसाई धर्मके विरुद्ध सभासे हो मोनोफिसाइट नाम चल पड़ा। इस सभामें | समझ माना न था। मिशर. सिरीया और मेसो- स्थिर हुआ था,-'ईसामें एकाधार दो प्रकृति विद्यमान पोटेमिया प्रभृति स्थानों में उक्त मतावलम्बी बहुत हैं। उनका परिवर्तन वा विभाग कोई समझ नहीं दिनतक प्रबल रहे। ये अलेकज़न्द्रिया और सकता।' किन्त साधारण सिरीयक ईसाइयोंका मन| अन्तियोकके धर्मगुरुका धर्मानुशासन खोकार करते इस बातसे बिगड़ गया था। तर्क-वितर्क, वाद-प्रति थे। ई०के हठे शताब्दमें याकुब-बर्दाइयोंके अभ्युदयसे वाद, विरुद्धवादियों में परस्पर लड़ाई झगड़ा लातजता उन्हो ने स्वाधीन समाज बना लिया। उनमें कोई- पौर शेषमें लाठी-सोटा चलने लगा। ई०के ६४ कोई पर्मनी समाजसे जा मिला था। शताब्दको मोनोफिसाइट सम्प्रदाय आदि सिरीयक आदि-सिरीयक ईसाई पोपका प्राधान्य नहीं समाजसे पृथक् हुआ। उसके पीछे सम्राट जष्टिन् मानते। उनकी बाइबिल सिरीयक भाषामें लिखी है। और नष्ठिनियान्के इस सम्प्रदायको छोड़ रोमक उसोके हारा उपासनादि कम होता है। दूसरा समाजमें जा मिलनसे इन लोगोंपर बड़ा गड़बड़ पड़ा धर्मकाण्ड ग्रीक-समाज-जैसा है। उनके पुरोहित था। इनमें परस्पर एकता न रही। फिर इस याजक होनेसे पूर्व विवाह कर सकते हैं, किन्तु पीछे समाजसे कितने ही नूतन दल निकले थे। उनमें एक | नहीं। उन्हें द्वितीय दारपरिग्रह करनेका भी अधि- दलका नाम 'अकेफोलोई ( Akepholoi) पड़ा। कार प्राप्त नहीं। बिशपों को एकबारगी ही विवाह ५१८ ई०को विषम तक उठा था-ईसाका शरीर करना मना है। वे सिद्धपुरुषका चित्र रखते पौर भ्रष्ट है या नहीं। पन्तियोकके सेवेरास नामक उसका स्तव करते हैं। रमणी बहुत धर्मशीला होती पदचात बिशपके शिष्योंने (Seberians) प्रचार किया, हैं। स्त्री-पुरुष उभय उपवासादि किया करते हैं. ईसाका शरीर भ्रष्ट है। उधर गजनास नामक किन्तु उनकी संख्या अति अल्प है। बिशपके शिष्य (Gajanites) कहते फिरे,-ईसाका नेटोरियान ( Nestorians) शरीर कभी भ्रष्ट नहीं। इसीप्रकार प्रथम दल १. वें शताब्द सिरीयक-समाजमें नेष्टोरियास 'फौलोट्रिष्ट (Phthartolotrist) पर्थात् भ्रष्टोपासक | नामक एक महामाने जन्म लिया था। उनके वाक्- और द्वितीय दल 'अफौंदोसिटौ' (Aphthartado-1 पटुता और सदुपदेशसे देशीय सकल लोग मुग्ध cetce) पर्थात् पूतदेह-पूजक वा शिक्षक कहाया।। हुये। ४२८ ई०को वह कनस्तान्तिनोपलके धर्मगुरु
पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/१३७
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।