ईसाई वासियों को ईसाई-धर्म की दीक्षा देनेके लिये बड़ा , हिन्द्र सहजमें युरोपीयों के मुखसे धर्म की बात नहीं उद्योग किया था। उन्होंके यत्नसे दुपाति-नुनेज सुनते। विशेषतः बहुदिनसे वे जिस धर्म और ( Duarte Nureza Dominican) नामक एक विश्वासपर चलते हैं, उसे भी एककाल सामान्य मानव व्यक्ति (१५१४-१०ई० ) सर्वप्रथम बिशप (Bishop) हटा नहीं सकते। इसीसे उन्होंने प्रथम भारतका बन भारत आये। वे जन-डि-पालवुकार्क (John de | आचार-व्यवहार समझा। वे अपनेको नाम Albuquerque) गोया-नगरके सर्वप्रथम बिशप हुये।। तथा जन्मस्थान छिपा 'रोमक ब्राह्मण' बताया करते किन्तु उस समय भी काथोलिक समाज भारतमें अपना थे। फिर उन्होंने अनेक कष्ट उठा सन्यासीके वेशमें अभीष्ट बना न सका था। ब्राह्मण पण्डितों से संस्कृत और तामिल भाषा सीखी। १५४२ ई में सेण्ट जेवियर नामक एक जेसुट ! कुछ दिन बाद नोबिलौका नाम 'तत्त्वबोधस्वामी' भारत आये। मलबार, मदुरा तथा दक्षिण पड़ गया। द्राविड़के ब्राधणों ने तत्त्वबोधको 'रोमक मन्द्राजके अनेक असभ्यों और तेनिबल्ली जिलेके परवर ब्राह्मण' मान लिया था। जेसुट सन्यासी उन लोगों के नामक कैवर्ती ने सेण्टजेवियरसे दीक्षा ली थी। पाश्चयसे घुमफिर स्वकार्य बनाने लगे। प्रथम उन्होंने दाक्षिणात्यके वे लोग आज भी सेण्टजे.वियर पर तामिल भाषामें 'आत्मनिर्णयविवेक' और 'पुनर्जन्म पतिशय भक्तिया रखते और अपनेको 'जे.वियरके अाक्षेप' नामक दो ग्रन्थ लिखे। उनमें उन्होंने वेदान्त- सन्तान' कहते हैं। जेस्ट समाजमें सेण्टजे.वियर के मतसे सिद्ध आत्मतत्त्व एवं परलोकका विषय पौर पतिशय सम्मानित हैं। उन्होंने भारतवर्ष व्यतीत पुनर्जन्मके सम्बन्ध में पुराणका मत काट डाला। हिन्दू भारत-महासागरके दीपपुच्च और जापानमें भी ईसाई दाशनिकों में बहुतसे उनके ग्रन्य पढ़कर चिढ़ गये और धर्म चलाया था। पन्तसमय चीन राज्यमें धर्म उनकी बात शास्त्रके विरुद्ध समझ उपहास करने चलाने के लिये गये और वहा जा पनाहार पनिट्रासे लगे। इसपर उन्होंने निज मतको समर्थन करनेके १५५२ ई०की २२वौं दिसम्बरको नाङ्गकिन नगरमें लिये कल्पित वेद और उपवेद लिखनापारम्भ किया । कालके ग्रास पतित हुये। १५५४ ई०को १५ वीं उनके रचित एक कल्पित उपवेदमें लिखा है,- मार्चको उनका अस्थि मंगाकर गोया नगरके रौप्या- "ब्रह्मा म ईश्वरी नित्य नावतारय निश्श्यः । न सृष्टि: तस्य जगत: वैवलं नररूपकः । धारमें रखा गया।-१५४८ को उता निवल्ली यथा त्वञ्च तथा स हि विशेषो नास्ति किश्चन । जिलेमें एण्टानिमो-क्रिमिनल नामक एक विख्यात सृष्टिं नाशं पालनन्तु करोति स स्वयम्प्रभुः । जैसूट किसी भारतवासीके हाथों निहत. हा तस्यावतारो नास्त्येव गुणादि स्पर्शनं तथा।" था। उसके पर वर्ष भी अनेक संभ्रान्त जसुटोंने ब्रया न तो नित्य ईखर, न ईखरके अवतार पौरम धर्म चलाने आ विषम शास्ति उठायो। १५५० ई०को जगतके सृष्टा ही हैं। वे सामान्य मानवमात्र ठहरते बम्बई प्रदेशके अन्तर्गत थाने नगरमें जेसुटों का एक हैं। स्वयम्भ ईखर हो सृष्टि, नाश और पालन करता धर्मालय बना। इस स्थानमें विस्तर असभ्यों को है। उसमें अवतार किंवा स्पर्थादि गुण नहीं होता। ईसाई धर्मको दीक्षा मिली। थाना देखो। इसीप्रकार गुरु भावसे जेसुट सन्यासौने हिन्दुओंके १५०६ ई० में राबर्ट डि नोबिली नामक एक धर्मपर पाक्रमण किया। अनेक पल्पबुद्धि ब्राझोंने सम्मान्त जेसुट इटलोसे मन्द्राजके उपकूल पाये। उनके कल्पित वेदपर विश्वासकर और उसे वैदिक उन्होंने जिस प्रकार यहां आकर ईसाई धर्म चलाया, | धर्म समझ ईमाई धर्म मान लिया था। (ऐसे हो वह बहुत ही पद्धत और कौतूहलोद्दीपक था। कल्पित वेदका एक पुस्तक औरण के प्रधान देवमन्दिरमें उन्होंने सोचा,-'भारतवासी हिन्दू युरोपीयों से स्वेच्छ मिला है।). की तरह प्रतिशय वृणा करते हैं, सुतग कोई उच्च ! Asiatic Researches, Vol. XIr. p.2.' Vol. III. 34
पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/१३४
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