ईश्वरता-ईश्वराधीनता है। विद्यासागर स्वास्थ्यरक्षाके लिये समय समय पर | है। समस्त जगत्को ईश्वरमय देखना और उससे वहां जाकर रहते और सन्थालोंका बड़ा उपकार प्रत्येक वस्तुको अभिन्न मानना ईश्वरप्रणिधान कहाता करते, वे भी इन्हें देवतातुल्य समझते थे। है। इसके अवधारणसे मनुष्य जीवन्मक्त हो जाता है। विद्यासागरका हृदय भक्तिमय रहा। ये माता- | ईश्वरप्रसाद (सं० पु०) ईश्वरका अनुग्रह, खुदाको मेहरबानी। पिताको ईखर-जैसा मानते थे। माता-पिता ही इनके पाराध्य देवता थे। जब मातापिताको बात ईखरभाव (सं० पु०) राजदशा, शाहाना हालत । कोई उठाता, सब देखते-देखते पुलक, भक्ति अथवा ईश्वरमल्लिका (सं० स्त्री०) वकवृक्ष, अगस्तका पेड़। प्रदर्शन-निबन्धनके दुःखसे महात्माका हृदय प्रेमायुसे ईश्वरमिश्र-१ रूपतरङ्गिणी-व्याकरणके रचयिता। भर जाता। संक्षेपमें कहनेसे विद्यासागर एक शास्त्र- २ लघुजातकके टीकाकार। विशारद, समाजसंस्कारक, राजनैतिक और देश-| ईश्वरमूलक (सं० पु०-क्लो०) तरुभेद, एक पेड़। हितैषी महापुरुष थे। अधिक क्या, ये वर्तमान ईश्वरमोठे-स्मतिकल्पद्रुम रचयिता। वङ्गसाहित्य-जगत्के पितास्वरूप माने जा सकते हैं। ईवरविभूति (सं. स्त्री०) ईश्वरका ऐश्वर्य, रह १८८१ ई के जुलाई मास में (१२९८ बंगला सनके शान्। यह संसारमें सर्वत्र विराजती है। आत्मज्ञानमें श्रावण ) महात्मा विद्यासागरका परलोक हुआ। ईश्वरको विभूतिका प्रत्यक्ष प्रमाण विद्यमान है। ईखरता, ईशिता देखो। ईखरशर्मा-व्यवस्थासेतु नामक स्म तिग्रन्थके रचयिता। देखरदास-१ ज्योतिषरायके पुत्र। इन्होंने 'मुहर्तरत्न' | ईखरसख, ईशसख देखो। नामक ज्योतिषग्रन्थ लिखा था। २ प्रत्युक्तपदमञ्जरी- | ईखरसझ ( स० क्लो०) १ मन्दिर, मसजिद । २ त्रिभु- कोषके रचयिता। अपर नाम ईश्वरक्षण-कालिदास | वन, जहान्। रहा। ईश्वरसभ (सं० लो०) राजपरिषत, शाही मजलिस। ईखरदीचित-रामायण-व्याख्याके रचयिता। ईश्वरसाक्षिन् (सं० पु०) ईश्वर एव साक्षी, कर्मधा। ईश्वरनिषेध ( स० पु० ) १ नास्तिक्य, इलहाद, ईश्वरका | वेदान्तिक मतसिद्ध मायावत चैतन्य विशेष । माया न मानना। २ अनिष्टजनक कार्य, जिस कामसे द्वारा पाच्छादित चैतन्यको देवरसाक्षी कहते हैं। बुराई आये। क्योंकि ईखरका उपाधि नामान्तर-स्वरूप है, माया ईश्वरनिष्ठ (सं० त्रि.) ईखरे निष्ठा दृढ़ता वा भक्ति और तादृश चैतन्यमें कोई भेद नहीं। यस्य, बहुव्री०। ईश्वरपरायण, ईश्वरको माननेवाला। | ईश्वरसाधन (सं० लो०) भगवत्पूजा, खुदाको परस्तिश । ईखरपरायण (सं० त्रि.) ईश्वर एव परं मुख्यं अयन ईश्वरसुमति-पार्वतोपरिणय नामक संस्कृत ग्रन्थक पाश्रयो यस्य, बहुव्री०। भक्त, सिर्फ ईश्वरका सहारा रचयिता। लेनेवाला। ईश्वरसेवा ( स० स्त्री० ) ईश्वरको उपासना, खुदाकी ईश्वरपुरी-एक साधु। गया धाममें इनी महाप्रभु परस्तिश। चैतन्यदेवने दीक्षा ली थी। चैतन्यदेव देखी। . ईश्वरा (सं० स्त्री० ) ईश्वरस्य स्त्री, ईश्वर-टाप । ईश्वरपूजक (सं० त्रि.) ईश्खरकी उपासना करने- ईश्वरको स्त्री दुर्गा। “विन्धस्तमङ्गलमहोषधिरौश्वराया स्त्रातो रण- वाला, जो ईश्वरको पूजता हो। . प्रतिसरण करेण पाणिः।" (भारवि) ईश्वरपूजा (सं० स्त्री०) भगवान्की आराधना, खुदा-ईवराधीन ( स० वि०) भगवान्के वशीभूत, जो ........... मालिकके मातहत हो। ईश्वरप्रणिधान (सं० क्लो०) प्रगाढ़ समाधियोग, गहरा | ईश्वराधीनता (सं० स्त्री०) खरतन्त्रता, मालिकको. मतहबी तवसमतयह योगके पांच नियमों में अन्तिमा मातहतो।
पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/१२१
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