जिनकी भाषा राजस्थानी नहीं है। चम्पारन, सारन और शाहाबाद के तीन भोजपुरी ज़िले भी, जो इस समय बिहार प्रान्त में हैं, इस बार आ जाने चाहिए। संपूर्ण भोजपुरी लोगों का एक ही सूबे में रहना उचित प्रतीत होता है। कमायूँ तथा गढ़वाल के लोग अपनी इच्छानुसार इस सूबा हिन्दुस्तान में रह सकते हैं। यह याद रखना चाहिये कि कमायूँ और गढ़वाल ने हिन्दी को ही अपनी साहित्यिक भाषा के रूप में अपना रक्खा है। इस समय भी वे संयुक्तप्रान्त के साथ हैं।
जो हो, वर्तमान हिन्दुस्तानी-मध्य-प्रान्त तथा आगरा और अवध के संयुक्त प्रान्तों का त्रिवेणी-संगम हिन्दुस्तानी लोगों के मोक्ष का एकमात्र उपाय है। सूबा हिन्दुस्तान बनाने के लिये इन तीनों का पूर्ण रूप से एक हो जाना नितान्त आवश्यक है। वास्तव में यह तीनों हैं भी एक। देहली तो अपनी है ही, इसके सिवाय यमुना पार सरस्वती नदी तक का सरहिन्द का भूमि-भाग भी अपना ही है। 'हिन्द' का 'सर' घड़ से अलग नहीं देखा जा सकता। पंजाब प्रान्त को यह भूमिभाग हमें देने में कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए क्योंकि यहाँ पंजाबी लोग अधिक संख्या में नहीं बसते। असली पंजाब तो सतलज तक है। इन्दौर को छोड़ कर मध्यभारत के शेष देशीराज्य अपने सूबे में पड़ेंगे। राजपूताना से भरतपुर आदि राज्यों को राजस्थान-संघ से अलग होने में कुछ आपत्ति हो सकती है।