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हिन्दी राष्ट्र
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मुलावे अथदा धोके के कारण उस संपूर्ण शक्ति का उपयोग करने की इन थोड़े से लोगों के हाथों में पूर्ण स्वतन्त्रता होने का सदा एक ही फल हुआ है—जो भारत वर्ष में महाभारत के युद्ध में देखने को मिला था तथा आज कल योरप के महायुद्ध में देखने को मिला।

जनपदों की प्रजा तो पहले हो से शक्तिहीन हो गई थी, महाभारत के बाद ये राजवंश भी बहुत निर्बल हो गये। इसका फल यह हुआ कि किसी एक राजवंश के राजा के शक्तिशाली हो जाने पर पड़ोस के अन्य राजाओं को अपने नाश के रूप में अपनी निर्बलता का कर देना पड़ता था। यह साम्राज्यों का युग था, जिसका उग्र रूप बौद्ध काल से देखने को मिला। बुद्ध भगवान् के समय तक उत्तर भारत में सोलह महाजनपदों के नाम से पृथक् पृथक् राज्य थे। दो तीन सौ वर्ष के अन्दर ही इनका स्वतन्त्र अस्तित्व लुप्त हो गया। ये सोलह महाजनपद तथा साथ ही इनके निकट के अन्य पड़ोसी राज्य मगध के मौर्य राजाओं के अधीन हो गये। जनपदों के इन स्वतन्त्र रूपों की नींव पर बनी हुई यह साम्राज्य प्रथा बहुत सराहनीय नहीं कही जा सकती। कुछ काल तक तो जनपदों का पृथक् अस्तित्व इन साम्राज्यों के अन्तर्गत भिन्न भिन्न प्रान्तों के रूप में चला, किन्तु यह अवस्था भी बहुत दिनों नहीं रह सकी।

अपने हाथों से शासन की बागडोर बिलकुल छिन जाने के कारण अब प्रजा की शक्ति दिन प्रति दिन और भी क्षीण होने