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हिन्दी-राष्ट्र
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भाविक तो थे हो, इसके अतिरिक्त दुखदायी भी थे। मगधाधिपति महाराज अशोक को कलिङ्ग देश (उड़ीसा) को अपने साम्राज्य में मिलाने के लिए एक लाख उड़िया लोगों की हत्या करनी पड़ी तथा डेढ़ लाख को क़ैद करना पड़ा था। इन संख्याओं से पता चलता है कि उस समय उड़िया लोग अपनी स्वतंत्रता के लिए कितने विकट रूप से लड़े होंगे। इस प्रकार से भारत के प्रत्येक स्वाभाविक राष्ट्र को नष्ट करके साम्राज्य स्थापित करना क्या सच-मुच बड़े गौरव की बात हो सकती है? क्या संसार के वर्तमान साम्राज्यों की तरह उत्तर भारत के ये प्राचीन साम्राज्य भी दुःख-दायी न होंगे?

मौर्य साम्राज्य से पूर्व भारत की अवस्था भिन्न थी। बुद्ध भगवान के समय में केवल उत्तर भारत में ही सोलह स्वतन्त्र बड़े बड़े राज्य थे। महाभारत के समय में भी भारतवर्ष बहुत से स्वतन्त्र राज्यों में विभक्त था। उस समय चक्रवर्ती राजा होते थे, किन्तु उस चक्रवर्तित्व और हिन्दू मुसलमान-तथा वर्तमान काल के साम्राज्यों में बहुत अन्तर है। किसी एक जनपद के राजा के चक्रवर्ती होने का केवल इतना ही तात्पर्य था कि अन्य जनपदों के राजा-गण उस राजा को अपने बीच में सबसे अधिक शक्ति शाली मान लेते थे। जनपदों के स्वतंत्र अस्तित्व रहने में इस चक्रवर्तित्व से कोई कठिनाई नहीं पड़ती थी। कुरु जनपद के महा राज युधिष्ठिर भारत के चक्रवर्ती राजा थे, इस से यह तात्पर्य कदापि नहीं था कि वे इन्द्रप्रस्थ से बैठ कर मगध, पाण्ड्य, सौराष्ट्र