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हिन्दी-राष्ट्र
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प्रान्त बड़े अस्वाभाविक ढंग से संघटित हैं। महासभा ने इन्हें अधिक स्वाभाविक रीति से बांटने का यत्न किया है। भारत के इन विभागों का आपस में क्या सम्बन्ध रहेगा या रहना चाहिए, यह प्रश्न पृथक् है। इसमें तो कोई सन्देह नहीं कि इनको आजकल से तो कहीं अधिक व्यक्तिगत स्वतन्त्रता देनी होगी। भारत जैसे विशाल द्वीप का एक केन्द्र से उत्तम शासन होना अस्वाभाविक, अहितकर तथा असम्भव है। भारत के ये विभाग योरप के राज्यों के समान पूर्ण रूप से स्वतंत्र रहेंगे, अथवा भविष्य में बनने वाले ब्रिटिश-राष्ट्र-संघ के (British Commonwealth) इंगलैंड, कन्नाडा, आस्ट्रेलिया, दक्षिण अफ़्रीका तथा न्यूज़ीलैंड आदि विभागों के समान आपस में सम्बद्ध रहेंगे, अथवा अमेरिका के संयुक्त राज्यों की तरह स्वतंत्र भारत में पृथक् रहते हुए भी एक दूसरे से जकड़े रहेंगे, इन प्रश्नों पर हमें इस समय विचार नहीं करना है। यह राजनीतिज्ञों का क्षेत्र है।

प्राचीन भारत की राज्य व्यवस्था

राज्य शासन के सम्बन्ध में भारत की प्राचीन अवस्था पर भी एक दृष्टि डालना उचित होगा। यहाँ शब्दाडम्बरों से हमें बहुत सावधान रहना चाहिए। पूरे पञ्जाब पर भी अधिकार करने में असमर्थ सिकन्दर 'भारत विजयी महाराज सिकन्दर' कहलाते हैं। हमारा काम इन सुन्दर वाक्यों के दुहराने से नहीं चलेगा। मुसलमान-काल में कई बड़े बड़े साम्राज्य भारत में स्थापित हुए थे किन्तु इस सम्बन्ध में निम्नलिखित बातें ध्यान देने योग्य हैं। मुसल-