पृष्ठ:हिंदी रस गंगाधर.djvu/६७

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के द्वारा उत्पन्न होनेवाली मानते हैं। क्या आप कह सकते हैं कि व्युत्पत्ति से भी कोई अदृष्ट उत्पन्न होता है और वही प्रतिभा है? यदि नहीं तो बात दूसरी ही है। हमारी समझ में तो वामन और मम्मट के 'संस्कारविशेष' शब्द का अर्थ पूर्वजन्मीय वासना मानना ही उचित है। दंडी भी तो इनके सर्वथा अनुकूल नहीं; क्योंकि वे प्रतिभा को 'वासना' नही, किंतु 'वासनागुणानुबंधि' मानते हैं। रहे रुद्रट, सो उनकी इनकी भी राय एक नहीं हो सकती, क्योंकि वे तो उसे इस जन्म में भी व्युत्पत्ति के द्वारा उत्पन्न हो सकनेवाली मानते हैं, केवल सहज ही नहीं। इस प्रकार इनका मत मिलता नहीं है।

यह तो हुआ इन लोगों का आपस का मतभेद। अब आप यह सोचिए कि वास्तव में काव्य बनाने में कवि को क्या करना पड़ता है? इसका उत्तर यही होगा कि सुंदर पदों और अर्थों की योजना तथा कल्पना। अब आप थोड़ा सा विचार करते ही समझ सकते हैं कि यह काम बुद्धि से होता है। न तो वह हमारी भोग्य वस्तुओं की तरह हमें अदृष्ट के द्वारा सिद्ध रूप में प्राप्त होता है और न संस्कार से ही बन सकता है। तात्पर्य यह कि यह काम बिना बुद्धि के नहीं हो सकता। अदृष्ट और संस्कार यदि कारण हो सकते हैं, तो हमारी बुद्धि को वैसी बनाने के कारण हो सकते हैं, स्वतंत्रतया काव्य के नहीं हो सकते। तब यदि प्रतिभा को काव्य का कारण मानना है, तो उसके सुप्रसिद्ध अर्थ 'नवनवोन्मेषशालिनी बुद्धि'