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क्या पदार्थ? वास्तव में प्रतिभा एक प्रकार की बुद्धि का नाम है। अतएव यह कहा जाता है—

बुद्धिर्नवनवोन्मेषशालिनी प्रतिभा मता।

अर्थात् जिसमें नई नई सूझ होती है, उस बुद्धि को प्रतिभा माना जाता है।

अब यह देखिए कि साहित्य के प्राचीन आचार्यों ने प्रतिभा अथवा शक्ति का क्या अर्थ किया है? दंडी तो इस विषय में कुछ विशेष लिखते नहीं, पर उनके दिए हुए प्रतिभा के विशेषणों से कुछ सिद्ध हो जाता है, जिसे हम आगे लिखेंगे। हाँ, रुद्रट ने 'शक्ति' की व्याख्या अवश्य की है, जो पहले लिखी जा चुकी है। उससे यही सिद्ध होता है कि वे एक प्रकार के संस्कार को शक्ति मानते हैं; क्योंकि उनके हिसाब से 'शक्ति' वह पदार्थ है, जो कविता के अनुकूल अर्थों और शब्दों की स्मृति का निमित्त है। इनके बाद वामन और मम्मट ने तो स्पष्ट शब्दों में एक प्रकार के संस्कार का नाम 'शक्ति' स्वीकार किया ही है।

अब देखिए, संस्कार क्या वस्तु है। वास्तव में संस्कार एक प्रकार का स्वतंत्र गुण है, जिसे पूर्वजन्म के ज्ञान की वासना कह सकते हैं। पर 'काव्यप्रदीप' के 'संस्कारविशेषः' शब्द की व्याख्या करते हुए नागेश ने 'उदद्योत' में लिखा है कि शक्ति शब्द से यहाँ एक विशेष प्रकार का अदृष्ट (पूर्वजन्म के कर्मों का फल) लिया गया है। वे लिखते हैं कि