पृष्ठ:हिंदी रस गंगाधर.djvu/६३

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अब आगे काव्यप्रकाशकार मम्मटाचार्य हैं। वे कहते हैं—

शक्तिनिर्पुणता लोकशास्त्रकाव्याद्यवेक्षणात्।
काव्यज्ञशिक्षयाऽभ्यास इति हेतुस्तदुद्भवे॥

अर्थात् शक्ति (प्रतिभा) और लोकव्यवहार तथा शास्त्रों और काव्यादिकों के विमर्श से उत्पन्न हुई निपुणता—अर्थात् व्युत्पत्ति, एवं जो लोग उत्कृष्ट काव्य का बनाना और विचारना जानते हैं, उनकी शिक्षा से अभ्यास; ये तीनों सम्मिलित रूप में काव्य के कारण हैं। सारांश यह है कि काव्य का कारण तीन वस्तुएँ हैं—शक्ति, व्युत्पत्ति और अभ्यास।

इस श्लोक को हम यदि "नैसर्गिकी च प्रतिभा...." इस पूर्वोक्त दंडी के श्लोक का सुसंस्कृत अनुवाद कहे तो मर्मज्ञ विद्वानों को कुछ भी विप्रतिपत्ति न होगी। हाँ, इतना अवश्य है कि मम्मट ने अपनी व्याख्या में व्युत्पत्ति और अभ्यास का अच्छा विवेचन किया है। पर प्रतिभा की व्याख्या करते हुए उन्होंने जो शब्द लिखे हैं, वे तो ज्यों के त्यों वामन के कहे जा सकते हैं। सो इसे दंडी और वामन दोनों के अभिप्रायों का संकलन कहे तो कोई अत्युक्ति न होगी।

वाग्भट लिखते हैं—

प्रतिभा कारणन्तस्य, व्युत्पत्तिस्तु विभूषणम्।
भृशोत्पत्तिकृदभ्यास इत्यादि कविसंकथा।

अर्थात् प्रतिभा काव्य को उत्पन्न करती है, व्युत्पत्ति उसको सुशोभित बनाती है और अभ्यास उसकी उत्पत्ति को बढ़ाता है,