पृष्ठ:हिंदी रस गंगाधर.djvu/५९

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केशव मिश्र और गोविंद ठक्कुर दोनों ही सौंदर्य का कारण रस और अलंकार दोनों को मानते हैं। पर पहले महाशय साहित्यदर्पण के समान 'सौंदर्यपूर्ण अर्थ के वर्णन' को काव्य मानते हैं, और दूसरे काव्यप्रकाश के अनुयायी होने के कारण 'सौंदर्यपूर्ण अर्थ और उसके सौंदर्यपूर्ण वर्णन' दोनों को काव्य मानते हैं।

उनके बाद पंडितराज ने भी 'सौंदर्यपूर्ण अर्थ के वर्णन' को काव्य माना है; पर वे समग्र सौंदर्य की मूलकारणता एक रस को ही दे देना उचित नहीं समझते। उनका कहना है कि चाहे जिस किसी अर्थ के ज्ञान से हमें अलौकिक आनंद, वह थोड़ा हो या तन्मय कर देनेवाला हो, प्राप्त हो जाय, वह प्रत्येक अर्थ सौंदर्य का कारण हो सकता है। उसका रस के साथ सर्वथा संबंध होना आवश्यक नहीं।

रही हमारी टिप्पणी। सो हमसे और पंडितराज से केवल इतना ही मतभेद है कि हम केवल वर्णन को ही कवि की कृति नहीं समझते; किंतु काव्य में वर्णित अर्थों को भी उसी की कृति मानते हैं, जैसा कि रुद्रट का मत लिखते समय हम सिद्ध कर आए हैं।

काव्य का कारण

यह तो हुई काव्य की बात। अब इसके आगे इस ग्रंथ में काव्य के कारण का विवेचन है। 'काव्य का कारण