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ने मुझे जूनागढ़ और चापासनी (जोधपुर, मारवाड़) के आचार्यसनों पर विराजमान चि॰ गोस्वामी श्रीपुरुषोत्तमलालजी तथा चि॰ गोस्वामी श्रीव्रजभूषणलालजी के अध्यापन के लिये नियुक्त किया। इसी अवसर में मुझे काशी की साहित्याचार्य परीक्षा के लिये रसगंगाधर के अध्ययन और मनन की आवश्यकता हुई। रसगंगाधर से परिचित सभी संस्कृताभिज्ञ इस बात को मानते हैं कि रसों और भावों का जैसा विशद विवेचन रसगंगाधर में है, वैसा और कही नहीं है। अतः इस समय मेरे हृदय में अपने पूर्वोक्त मित्र के आग्रह की स्मृति जागरित हुई और विचार हुआ कि क्या ही अच्छा हो, यदि यह ग्रंथ हिंदी-भाषा-भाषियों के भी उपयोग में आ सकें। इस विचार के कुछ दिन पूर्व, मेरे मित्र और भूपाल-नोबल्स स्कूल, उदयपुर (मेवाड़) के अध्यापक साहित्यशास्री श्रीगिरिधर शर्मा व्यास ने मुझसे इस अनुवाद के लिये कहा भी था। कदाचित् उनका यह विश्वास था कि मेरा अनुवाद संस्कृत रसगंगाधर के अध्येता छात्रों के लिये भी उपयोगी होगा।
चापासनी एक छोटा सा गाँव है, इतना छोटा कि वहाँ सब मिलाकर सौ मनुष्यों की भी वस्ती नहीं है। यद्यपि अध्ययन, अध्यापन और भोजन-निर्माणादि के कारण (क्योंकि मैं यहाँ सकुटुंव नही रहता था) बहुत ही कम समय बच पाता था; तथापि यहाँ कोई ऐसा व्यक्ति नहीं था जो मुझसे इस समय को भी छीन लेता। हाँ, यदि मैं उसका दुरुपयोग ही