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इसका स्पष्ट अर्थ यह है कि "काव्य उस पदावली को कहते हैं, जिसमे, जो कुछ हम कहना चाहते हैं, वह थोड़े में पूर्णतया कह दिया जाय; न तो व्यर्थ का विस्तार हो और न यही हो कि जो बात कह रहे हैं, वही साफ साफ न कही जा सके।

दंडी (छठी शताब्दी, अनुमित)

"काव्यादर्श"कार आचार्य 'दंडी' का भी, जिनको कि प्राचीन आचार्य्यों में माना जाता है, प्रायः यही काव्य-लक्षण है। उन्होंने अग्निपुराण के लक्षण में से 'संक्षेपाद् वाक्यम्' इस भाग को निकालकर केवल उसकी व्याख्या को ही स्वीकार किया है; पर दोनो में भेद कुछ भी नहीं है। वे कहते हैं—"शरीरं तावदिष्टार्थव्यवच्छिन्ना पदावली।"

रुद्रट (वामन[] से पूर्व)

इनके बाद आलंकारिक-शिरोमणि रुद्रट का समय आता है। उन्होंने अथवा उनके पूर्ववर्ती किसी आचार्य ने, अपनी सूक्ष्म दृष्टि से, एक गहरी बात सोची है। वह यों है—

हम पहले कह आए हैं कि काव्य शब्द का वास्तविक अर्थ कवि की कृति है। अब सोचिए कि कवि जिस तरह


  1. यद्यपि रुद्रट का समय पूर्णतया निश्चित नहीं हो सका है, तथापि अलंकारसर्वस्वकार ने, जो कि काव्यप्रकाशकार से प्राचीन हैं, उन्हें वामन से प्राक्तन आचार्यों में समझा है, सो हमने भी वही समय स्वीकृत किया है।