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पद्य का प्रथमांश | पृष्ठांक | पद्य का प्रथमांश | पृष्ठांक |
प्रिया विरह ते | १६४ | र | |
फ | रघुवर-विरहानल | ४३ | |
फनिपति धरनिहि | ११६ | रन-आँगन लहि | २४६ |
फाड़ि नखन शव | १२३ | रसगंगाधर नाम यह | ८ |
ब | रहैं सदैव समाधिमग्न | १६३ | |
बाल बात मम | २३६ | ल | |
बिन माँगे सुख देत | १६९ | लछमन जो वह | २६५ |
लीला ते बाँध्यो जलधि | २५५ | ||
भ | व | ||
भलैं अहित जन | ११५ | वह मंजुल मृदु हँसन | २१० |
भामिनि! अजहु न | २८० | विधि वंचित हौं | २१९ |
म | विरह महानल | २१७ | |
मधुर-मधुर कछु | २२७ | विलय होहु ततकाल | ११३ |
मधुर मधुहु ते | २२८ | विशत भवन देखे | २७३ |
मनन-तरी तरि | ८ | श | |
मम आवन ते | २३३ | श्रीगंगा के पुलिन | ९९ |
मलय-अनिल अरु | ९८ | स | |
मुकुलित किय मन | १८० | सब बंधुन को सोच | ९७ |
मेरु-मूल ते मलय | २३१ | सवै विषय विसरे | २७८ |
य | सहसा मैं हत | २२२ | |
यदि बोलैं वाक्पति | ११४ | सुवा-मधुर निरमल | १८२ |