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पद्य का प्रथमांश | पृष्ठांक | पद्य का प्रथमांश | पृष्ठांक |
अरपे याचत दुजहिं | १०४ | करैं परिष्कृत गहरै | ६ |
अवधि-दिवस संझा | २०९ | कहाँ शंभु को धनुष | २५९ |
असित अगर विष | २०५ | कांतिशेष शशिरेख | २२० |
अहित नियम तुव | २६४ | किए सूँड कुंडल सरिस | २१८ |
अंतक के अंतक | २६२ | कुच-कलसन जुग | २१५ |
आ | कुंडल सम धनु | १३० | |
आही गई रजनी | २०० | क्रोधयुक्त जय-विजय | २६६ |
उ | ख | ||
उदधि, दीप, कुल-अचल | १०७ | खंडित वनिता नैन-नलिन | १६८ |
ऊ | |||
ऊंचे कबरिन | १३६ | ग | |
क | गनिका अजामेल आदिक | १७० | |
कछु नत ग्रीवा | २१३ | गोपनि बातनि करी | २४४ |
कमल अनुहरत | १६२ | च | |
कमल-कान्ति अनुहरत | १६२ | चंचल नैन चकोर | २६० |
कमल-बीज सन | १६५ | चूमन दै म्वहि मेहरिया | १६६ |
करि आलिंगन सब | २४१ | छ | |
करि कस्तूरी-तिलक | १९८ | छमा करावन मुख्य | २८८ |
करि सैंकरनि उपाय | २७१ | ज | |
करु न कोररा कर | २३७ | जनक-सुता महि पर नहीं | २५० |
कर हरुए रे! नेक | २५३ | जनमी जब ते जग में | ९६ |