पृष्ठ:हिंदी रस गंगाधर.djvu/४१

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अंत में नहीं रख सकते थे, क्यों उत्तरालंकार के उदाहरण के तीन पादों पर ही ग्रंथ लटकता रह गया?

दूसरे, इस बात को तो काव्यमाला-संपादक भी मानते हैं कि पंडितराज रसगंगाधर के पाँच आनन बनाना चाहते थे, अतएव उन्होंने इस पुस्तक के प्रकरणों का नाम 'आनन' रखा था, क्योंकि गंगाधर (शिव) के पाँच आनन (मुख) होते हैं। फिर, चित्रमीमांसा का अनुकरण तो अधिक से अधिक अलंकारसमाप्ति तक हो सकता था, जो दूसरे आनन में समाप्त हो जाता। यदि उसका अनुकरण ही करना था, तो वे क्यों आगे लिखना चाहते थे। तीसरे, रसगंगाधर के उद्देश्यों में भी यह बात नहीं है कि जिससे यह अनुमान किया जाय।

अतः हमारी तुच्छ बुद्धि के अनुसार तो यह मानना उचित है कि पंडितराज का अंतिम ग्रंथ रसगंगाधर ही है और इसकी समाप्ति के पूर्व ही उनका देहावसान हो गया था।

अन्य जगन्नाथ

इसके अतिरिक्त एक और बात समझ लेने की है। वह यह कि अब तक संस्कृत भाषा में ग्रंथ निर्माण करनेवाले अनेक जगन्नाथ पंडित हो गए हैं, सो उनके नाम हम यहाँ काव्यमाला की भूमिका से इसलिये उद्धृत कर रहे हैं कि कोई उनकी पुस्तकों को भी पंडितराज की पुस्तकें न समझ ले।

१—तंजौरवासी जगन्नाथ—इनके ग्रंथ अश्वधारी, रतिमन्मथ और वसुमतीपरिणय हैं।