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अतः दोनों के विषय का विभाग हो जाता है, चमत्कार के अनुसार उनको पृथक पृथक समझा जा सकता है।

भावसंधि

इसी तरह, एक दूसरे से दबे हुए न हों, पर एक दूसरे को दबाने की योग्यता रखते हों, ऐसे दो भावों के एक स्थान पर रहने को 'भाव-संधि' कहते हैं। उदाहरण लीजिए-

यौवनोद्गमनितान्तशङ्किताः शीलशौर्यबलकान्तिलोभिताः।
संकुचन्ति विकसन्ति राघवे जानकीनयननीरजश्रियः॥
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जोबन-उदगम तें सु अहै जे अतिसै शंकित।
शील, शौर्य, बल, कांति देखि पुनि जे है लोभित॥
ते मिथिलाधिपसुता-नयनकमलनि की शोभा।
सँकुचत विकसत निरखि रामतन लहि-लहि छोभा॥

एक सखी दूसरी सखी से कहती है-यौवन के उत्पन्न हो जाने के कारण अत्यंत शंकायुक्त और सच्चरित्रता, शूरवीरता, बल और कांति के कारण लोभयुक्त श्रीजनकनंदिनी के नेत्रकमलों की शोभाएँ, श्री रघुवर के विषय में, संकुचित और विकसित हो रही हैं।

यहाँ भगवान् रामचंद्र के अंदर संसार भर से श्रेष्ठ यौवन की उत्पत्ति का एवं वैसी ही सच्चरित्रता, शूरवीरता आदि