पृष्ठ:हिंदी रस गंगाधर.djvu/३९३

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चंडालादिकों मे वर्णन किया जानेवाला निर्वेद, निदनीय और कायर पुरुषों मे तथा पिता प्रभृति के विषय मे वर्णन किए जानेवाले क्रोध और उत्साह, बाजीगर आदि के विषय में वर्णन किया जानेवाला विस्मय, गुरुजन आदि के विषय मे वर्णन किया जानेवाला हास, महावीर में वर्णन किया जानेवाला भय और यज्ञ के पशु के चरबी, रुधिर और मांस आदि के विषय में वर्णन की जानेवाली जुगुप्सा 'रसाभास' होते हैं। विस्तार हो जाने के भय से हमने यहाँ इनके उदाहरण नहीं लिखे हैं, सुबुद्धि पुरुषों को चाहिए कि वे सोच निकाले।

भावाभास

इसी तरह जिनका विषय अनुचित होता है, वे भाव 'भावाभास' कहलाते हैं। जैसे-

सर्वेऽपि विस्मृतिपथं विषयाः प्रयाता
विद्यापि खेदकलिता विमुखीबभूव।
सा केवलं हरिणशावकलोचना मे
नैवाऽपयाति हृदयादधिदेवतेव॥
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सबै विषय बिसरे, गई विद्या हू विललात।
हिय ते वह अधिदेवि-सम हरिननैनि ना जात॥

सभी विषय विस्मरण के मार्ग में पहुँच गए और विद्या भी खिन्न होकर विमुख हो गई; पर केवल वह हरिण के बच्चे के