पृष्ठ:हिंदी रस गंगाधर.djvu/३८९

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याद आया कि बेचारे कब से पीछे पीछे डोल रहे हैं, सो दया आ गई; तब नायिका ने उन पर नयन-कमलों की माला डाल दी। यह नयन-कमलों की माला डालना रूपी जा अनुभाव है, उसके वर्णन से नायिका के प्रेम की अभिव्यक्ति होती है, और 'तरुणेषु' इस बहुवचन के कारण 'वह अनेकों के विषय मे है' यह सूचित होता है; सो यह भी रसाभास है।

अच्छा, अब अनुभयनिष्ठा रति का उदाहरण भी सुनिए-

भुजपञ्जरे गृहीता नवपरिणीता वरेण वधूः।
तत्काल-जालपतिता बालकुरंगीव वेपते नितराम्॥
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नव दुलहिन भुज-पींजरे पकरी वर, बेहाल।
काँपत, ज्यो बालक मृगी परीजाल ततकाल॥

एक सखी दूसरी सखी से कहती है-नई ब्याही हुई दुलहिन को, वर ने, भुजा-रूपी पींजरे मे पकड़ लो; सो वह बेचारी तत्काल जाल मे पड़ी हुई हरिण की बच्चा की तरह काँप रही है।

यहाँ नववधू को प्रेम का थोड़ा भी स्पर्श नहीं है, सो रति अनुभयनिष्ठ होने के कारण आभासरूप हो गई। जैसा कि कहा गया है-

उपनायकसंस्थायां मुनिगुरुपत्नीगतायां च।
बहुनायकविषयायां रतौ तथाजुभयनिष्ठायाम्॥इति॥