यहाँ जिससे प्रेम करना अनुचित है, वह राजांगना आलंबन है। एकांत और रात्रि का समय आदि उद्दीपन हैं। साहस करके राजा के जनाने मे जाना, प्राणों की परवा न करना, साँस भर जाना और आलिंगन करना आदि अनुभाव हैं एवं शंका आदि संचारी भाव हैं। यहाँ प्रेम का
आलंबन जो राजांगना है, वह लोक तथा शास्त्र के द्वारा निषिद्ध है, इस कारण रस आभासरूप हो गया है।
यदि आप कहें कि यहाँ राज-रमणी के निषिद्ध होने के कारण रस आभास नहीं हुआ है, कितु राज-रमणो का जो 'चकितनयना' विशेषण है, उससे यह अभिव्यक्त होता है कि उसे पर-पुरुष के स्पर्श से त्रास उत्पन्न हो गया है, और तब यह सिद्ध हो जाता है कि नायिका को कामी से प्रेम नहीं है, सो प्रेम के अनुभयनिष्ठ–अर्थात् केवल नायक में होने के कारण रस आभास हो गया है तो यह ठीक नहीं; क्योंकि, यद्यपि नायिका बहुत समय से इस पर प्रासक्त है, तथापि अंत:पुर मे पर-पुरुष का जाना सर्वथा असंभव है, अतः 'यह मुझे कौन जगा रहा है। इत्यादि समझकर उसे त्रास होना उचित ही है। परंतु उसके अनंतर जब उसे उसका परिचय हुआ, तो उसने सोचा कि 'यह मेरा वह प्रियतम, मेरे लिये प्राणों को तिनका समझकर-टनकी कुछ परवा न करके, यहाँ आया है' तब उसे हर्ष उत्पन्न हुआ। इसी हर्ष को अभिव्यक्त करता हुआ राजरमणी का 'स्मेरवदना' विशेषण उसके प्रेम को