इस पद्य को असूया-भाव की ध्वनि मानना ठीक नहीं। तो इसका उत्तर यह है कि-एक ध्वनि का दूसरी ध्वनि से विरोध नही है-अर्थात् एक ही पद्य साथ-ही-साथ दो प्रथों की भी ध्वनि हो सकता है, क्योंकि यदि ऐसा न मानो तो महावाक्य की ध्वनियों का अवांतर वाक्यों की ध्वनियों के साथ होना और अवांतर वाक्यों की ध्वनियों का पदों की ध्वनियों के साथ होना, कहीं भी, न बन सकेगा।
३१-अपस्मार
वियोग, शोक, भय और घृणा आदि की अधिकता तथा भूत-प्रेत के लग जाने प्रादि से जो एक प्रकार का रोग उत्पन्न हो जाता है, उसे 'अपस्मार कहते हैं। इसकी मी गणना यद्यपि 'व्याधिभाव में ही हो जाती है, तथापि इसे जो विशेष रूप से लिखा गया है, सो इस बात को समझाने के लिये कि 'वीभत्स' और 'भयानक' रसों का यही ब्याधि अंग होती है, अन्य नहीं। परन्तु विप्रलंभ-शृंगार के तो अन्यान्य व्याधियाँ भी अंग हो सकती हैं। उदाहरण लीजिए-
हरिमागतमाकर्ण्य मथुरामन्तकान्तकम्।
कम्पमानः श्वसन कंसो निपपात महीतले॥
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अंतक के अंतक हरिहिं मथुरा आए जानि।
साँस लेत अरु कँपत महि पर्यो कंस भय मानि॥