पृष्ठ:हिंदी रस गंगाधर.djvu/३५८

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प्रियतम कुचों के अग्रभाग को हाथ से दबाकर तत्काल दूर चला गया; और क्रोधयुक्त नायिका, जिनके अग्रभाग लाल हो रहे हैं ऐसे, नेत्रों से देखती देखती चुप रह गई।

यहाँ अकस्मात् स्तनों के अग्रभागों का स्पर्श करना विभाव है और नयनों की ललाई तथा टकटकी लगाकर देखना अनुभाव हैं।

यहाँ आप पूछ सकते हैं कि-स्थायी-भाव क्रोध और संचारी-भाव अमर्ष मे क्या भेद है? इसका उत्तर यह है कि-दोनों के विषय मिन्न भिन्न हैं-यही भेद है। और विषयों के भिन्न होने का बोध उनके कार्यों की विलक्षणता से होता है। देखिए, क्रोध के कारण झट से प्रतिपक्षी के नाश आदि मे प्रवृत्ति होती है और अमर्ष के कारण केवल चुप रहना-आदि ही होते हैं। तात्पर्य यह कि वही भाव जब कोमलावस्था में रहता है तो अमर्ष कहलाता है और उत्कट अवस्था को प्राप्त हो जाता है तो कोष।

२०-अवहित्थ

हर्ष प्रादि अनुभावों को, लज्जा आदि के कारण, छिपाने के लिये जो एक प्रकार की चित्तवृत्ति उत्पन्न होती है, उसे 'अवहित्थ' कहते हैं। जैसा कि लिखा है-

अनुभावपिधानार्थोऽवहिथं भाव उच्यते।
तद्विभाव्यं भयव्रीडाधाष्टर्य कौटिल्यगौरवैः॥