पृष्ठ:हिंदी रस गंगाधर.djvu/३५६

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नहीं हो सकता; क्योंकि मेघ की गर्जना से उसके नाश का ही बोध होता है, उसका नहीं। पर, यदि कहो कि-यहाँ मूल पद्य में मेघ के लिये 'वारिवाइ' शब्द है, और वारिवाह शब्द का अर्थ पनभरा (जल भरनेवाला) भी होता है; सो इस तरह के निकृष्ट शब्द के प्रयोग से असूया ध्वनित हो सकती है, और खमभाव की शान्ति की ध्वनि को तो आप भी खोकार कर चुके हैं। तो हम कहते हैं कि-लामो, असूया और वनमाव की शांति के साथ इस भाव का संकर (मिश्रण) स्वीकार कर लेते हैं।

निम्नलिखित पद्य को तो इस भाव के उदाहरण में नहीं देना चाहिए-

गाढमालिङ्गय सकलां यामिनीं सह तस्थुषीम्।
निद्रां विहाय स प्रातरालिलिङ्गाऽथ चेतनाम्॥
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करि आलिङ्गन सब रजनि रही नींद जो साथ।
तेहि तजि अब वह परयो पात चेतना-हाय॥

एक दर्शक कहता है कि जो नींद रात भर गहरा आलिंगन करती रही-जिसने उसे पूर्णतया अपने वश में कर रखा था उसने, उसे छोड़कर, अब प्रातःकाल चेतना को आलिंगन किया है।

क्योंकि यहाँ जो चेवना शब्द है, उसका अर्थ विबौध है, अतः वह वाच्य हो गया है। सो "जिस तरह एक सत्यप्रतिज्ञ

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