पृष्ठ:हिंदी रस गंगाधर.djvu/३५०

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अर्थात् वात, पित्त और कफ नामक दोषों के, एक-एक, दो-दो अथवा तीनों के, प्रकोप से जो ज्वर-आदि रोग उत्पन्न होते हैं, उनसे उत्पन्न हुई चित्तवृत्ति का नाम, साहित्यशास्त्र में, 'व्याधि' कहा जाता है। उदाहरण लीजिए-

हृदये कृतशैवलानुषङ्गा मुहुरङ्गानि यतस्ततः क्षिपन्ती।
तदुदन्तपरे मुखे सखोनामतिदीनामियमादधाति दृष्टिम्॥
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हिय सेवालनि धारि, अँग इत-उत डारति, छीन।
पिय-बातनि रत सखिन मुख देत दीठि अति-दीन॥

एक सखी दूसरी सखी से कहती है कि-सेवालो को हृदय से चिपटाए हुए, अंगों को इधर-उधर पटकती हुई, यह (नायिका) उस (प्यारे ) की बातों मे तत्पर सखियों के मुख पर अपनी अत्यन्त कातर दृष्टि डाल रही है उनकी तरफ बड़ी दीनता से देख रही है।

यहाँ विरह विभाव है और अंगो का पटकना-आदि अनुभाव।

१६-त्रास

डरपोक मनुष्य के हृदय में व्याघ्रादि भयंकर जन्तुओं के देखने और बिजली की कड़क सुनने आदिसे जो एक प्रकार की चित्तवृत्ति उत्पन्न होती है उसे 'चास' कहते हैं। इसके अनुभावरामांच, कॅपकपी, निश्चेष्टता और भ्रम-आदि हैं। जैसा कि कहा गया है-