पृष्ठ:हिंदी रस गंगाधर.djvu/३०५

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
( १९० )


उनको अवश्य लाना चाहिए; और जो मधुर-रसों के अनुकूल वर्णन किए गए हैं, वे ओजस्वी रसों के प्रतिकूल होते हैं, अतः उनसे उन रसों को बचाना चाहिए। यह एक साधारण निर्णय है, इसे अच्छी तरह ध्यान में रखना चाहिए।

अच्छा, तो अब मधुर-रसों मे निषिद्धो को सुनिए । मधुर-रसों में लंबे समासों, जिनके आगे वर्गों के पहले, दूसरे, तीसरे और चौथे अक्षरो के संयोग हो-ऐसे ह्रस्वों, विसर्गों, विसर्गो के आदेश सकारों, जिह्वामूलियों, उपध्मानीयों, टवर्ग के अक्षरों, और प्रत्येक वर्ग के आद्य चार अक्षरो, रेफ अथवा हकार द्वारा बने हुए संयोगों, ल, म और न के अतिरिक्त अन्य व्यंजनों के उन्ही के साथ संयोगों-अर्थात् उनके द्वित्वों और वर्गों के प्रथम से चतुर्थ पर्यंत के वर्गों में से किन्हीं दो के संयोगों के समीप समीप मे बार बार प्रयोगों को छोड़ना चाहिए। और जिनके स्थान एवं प्रयत्न एक से हो-ऐसे वर्गों के प्रथम से चतुर्थ तक के बने हुए संयोग और श-ष-स के अतिरिक्त किसी महाप्राण अक्षर के द्वारा बने हुए संयोग का एक बार भी प्रयोग न आने देना चाहिए। अब इनमे से प्रत्येक के उदाहरण सुनिए। लंबा समास; जैसे-

  • [१] लोलालकावलिवलनयनारविन्द-

लीलावशंवदितलोकविलोचनायाः।


  1. * चंचल अलकावलि और चलते हुए नेत्र-कमलों की लीला ले जिसने सब मनुष्यों के नेत्रो को वशंवद कर लिया है-ऐसी, सायंकाल