पृष्ठ:हिंदी रस गंगाधर.djvu/३०

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लेखनकाल है, दारा सत्ताईस वर्ष के लगभग सिद्ध होता है, जब कि उसका पूर्ण यौवन कहा जा सकता है। अब, यदि हम पंडितराज को दारा के समवयस्क मान लें तो कोई अनुपपत्ति न होगी; प्रत्युत यह सिद्ध हो सकता है कि समवयस्कों मे प्रीति अधिक हुआ करती है, इस कारण समवयस्क ही रहे हों। और, यदि यह माना जाय कि दारा का उनके पास अध्ययनादि, जो कि उसके हिंदूधर्म की अभिरुचि और संस्कृतज्ञान आदि ऐतिहासिक वृत्तों से विदित है, हुआ हो, तो अधिक वय भी हो सकता है। निदान यह सिद्ध हो जाता है कि पंडितराज अप्पय दीक्षित की वृद्धावस्था में अवश्य विद्यमान थे। हाँ, यह कहा जा सकता है कि अप्पय दीक्षित और भट्टोजि दीक्षित आदि वृद्ध रहे होंगे और पंडितराज युवा। अतएव उस समय के उन कट्टर सामाजिक लोगों ने, बादशाही दरबार में रहने के कारण, इन पर संदेह करके इन्हें तिरस्कृत किया हो तो कोई आश्चर्य की बात नहीं। अप्पय दीक्षित द्राविड़ थे, भट्टोजि दीक्षित महाराष्ट्र और पंडितराज तैलंग; और आज-दिन तक भी इन जातियों में परस्पर सहभोज होता है; अतः अप्पय दीक्षित और भट्टोजि दीक्षित ने, जो उस समय वृद्ध थे, इनकी पंचायती में प्रधानता पाई हो तो कोई असंभव बात नहीं। अप्पय दीक्षित अंतिम वय मे कुछ समय काशी रहे भी थे और वहाँ के समाज में उनका अच्छा सम्मान था, यह भी उसी भूमिका से सिद्ध होता है। पंडितराज ने भी रस-