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कांति

जिनका चतुर नहीं माना जाता, उन वैदिक मादि लोगों के प्रयोग के योग्य पदों के अतिरिक्त प्रयोग किए जानेवाले पदों में जो अलोकिक शोभा रूपी उज्ज्वलता रहती है, उसे 'कांति' कहते हैं। जैसे-"नितरां परुषा सरोजमाला " इत्यादि पूर्वोक्त उदाहरण मे।

समाधि

रचना की गाढता और शिथिलता को क्रम से रखना अर्थात् पहले गाढ रचना का और पीछे शिथिल रचना का होना-'समाधिगुण' कहलाता है। इन्हीं-गाढ़ता और शिथिलता को प्राचीन आचार्य आरोह और अवरोह कहते हैं। प्रसाद-गुण मे और इस गुण मे गाढ और शिथिल रचना के क्रम का ही भेद है; क्योंकि प्रसाद-गुण मे वेव्युत्क्रम-विपरीत ढंग-से रहती हैं और इसमें क्रम से। तात्पर्य यह कि प्रसाद गुण मे पहले शिथिलता और पीछे गाढता रहती है और समाधिगुण मे पहले गाढता और फिर शिथिलता। समाधि का उदाहरण लीजिए-

  • [१] स्वर्गनिर्गतनिरर्गलगङ्गातुङ्गभङ्गरतरङ्गसखानाम्।

केवलामृतमुचां वचनानां यस्य लास्यगृहमास्यसरीजम्॥


  1. * कवि कहता है कि जिस (राजा) का मुख-कमल, स्वर्ग से निकली हुई अतएव बेरोक-टोक चलनेवाली गंगा की ऊँची और