पृष्ठ:हिंदी रस गंगाधर.djvu/२७१

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  • [१] नितरां परुषा सरोजमाला न मृणालानि विचारपेशलानि।

यदि कोमलतातवाङ्गकानामथ का नाम कथापि पल्लवानाम्॥

सुकुमारता

कठोर वर्गों के अतिरिक्त वर्णो से रचित होने का नाम 'सुकुमारता' है। जैसे-

[२]स्वेिदाम्बुसान्द्रकरणशालिकपोलपालि
दोलायितश्रवणकुण्डलवन्दनीया।
आनन्दमंकुरयति स्मरणेन काऽपि
रम्या दशा मनसि मे मदिरेक्षणायाः॥

इसके पूर्वार्ध मे सुकुमारता है। उत्तरार्ध मे तो माधुर्य और सुकुमारता दोनो हैं।

अर्थव्यक्ति

जहाँ अर्थ और अन्वय तत्काल विदित हो जाय, वहाँ 'अर्थव्यक्ति' गुण होता है। जैसे-

  1. * नायक नायिका से कहता है कि-यदि तेरे अग कोमल हैं, तो (कहना पड़ेगा कि ) कमलो की माला अत्यंत कठोर है, और मृणाल तो इस विचार में आने की शक्ति भी नहीं रखते कि-तेरे अंगो के समान है अथवा नही; रहे पल्लव सो न बेचारो की तो बात ही क्या करना है-उनका तो तेरे अंगो की तुलना के लिये नाम लेना भी दोष है।
  2. † नायक अपने मित्र से कहता है किसी के जल की सबन बूंदों से शामित कपोल-स्थल पर झूलते हुए कानों के कुण्डलो के कारण प्रशंसनीय और अनिर्वचनीय, मदमाते नेत्रवाली नायिका की रमणीय अवस्था, याद आते ही, हृदय मे आनंद को अंकुरित कर देती है।