पृष्ठ:हिंदी रस गंगाधर.djvu/२७

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पढ़ सकते थे, तो भट्टोजि दीक्षित और अप्पय दीक्षित भी उनके समय में रहे हो तो कोई आश्चर्य की बात नहीं।

पर, यहाँ एक और भी विचारणीय बात है, जिसने कि अप्पय दीक्षित को जगन्नाथ के समकालिक मानने में ऐतिहासिकों को भ्रांत कर दिया है। वह यह है कि पूर्वोक्त नीलकंठ दीक्षित, जो अप्पय दीक्षित के भ्राता के पौत्र थे, अपने बनाए हुए 'नीलकंठविजय' नामक चंपू मे लिखते हैं—

अष्टत्रिंशदुपस्कृतसप्तशताधिकचतुःसहस्रेषु।
कलिवर्षेषु गतेषु ग्रथितः किल नीलकंठविजयोऽयम्॥

अर्थात् वह 'नीलकंठविजय' कलियुग के ४७३८ वर्ष बीतने पर लिखा गया है।

यह समय ईसवी सन् १६३९ के लगभग होता है और उस समय शाहजहाँ का राजत्वकाल था। सो यह सिद्ध किया जाता है कि यह नीलकंठ पंडितराज का समकालिक था, इसके दादा अप्पय दीक्षित नहीं।

नीलकंठ ने स्वनिर्मित 'त्यागराजस्तव में यह लिखा है कि—

योऽतनुताऽनुजसूनुजमनुग्रहेणात्मतुल्यमहिमानम्॥

अर्थात् जिन (अप्पय दीक्षित) ने अपने छोटे भाई के पौत्र (मुझ) को, अनुग्रह करके, अपने समान प्रभाववाला बना दिया। इससे यह सिद्ध होता है कि नीलकंठ ने अप्पय दीक्षित से अध्ययन किया था। पर उसी भूमिका मे 'ब्रह्मविद्यापत्रिका' का हवाला देकर यह लिखा गया है—