पृष्ठ:हिंदी रस गंगाधर.djvu/२६५

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स्पर्श का अनुभव हो सकता है। इस तरह रसों के कार्य जो द्रुति-आदि चित्तवृत्तियाँ हैं, उनके अतिरिक्त रसों में रहनेवाले गुणो का हमे अनुभव नहीं होता। आप कहेंगे-अच्छा, जाने दीजिए; प्रत्यक्ष नहीं होता तो न सही; पर माधुर्य-आदि गुणो से युक्त ही रस दुति-आदि के कारण होते हैं अर्थात् उन गुणों के साथ रहने पर ही रसों से दुति-आदि चित्तवृत्तियाँ उत्पन्न की जा सकती हैं, अतः कारणता के अवच्छेदकअर्थात् कारण मे रहनेवाले एक विशेष धर्म के रूप में उनका अनुमान किया जा सकता है। सो भी ठीक नहीं, क्योंकि प्रत्येक रस जब कि बिना गुणों के ही उन वृत्तियों का कारण हो सकता है, तो गुणों की कल्पना करने में गौरव है-अर्थात् केवल रसों को ही उन वृत्तियों का कारण न मानकर उनके साथ गुणों का झमेला लगाने की क्या आवश्यकता है? आप कहेगे कि शृङ्गार, करुण और शान्त रसों में से प्रत्येक को द्रुति का कारण मानने की अपेक्षा 'तीनों माधुर्य-गुण-युक्त हैं, इस कारण तीनो से दूति उत्पन्न होती है। यह मानने में लाधव है-अर्थात् द्रुति के तीन कारण मानने की अपेक्षा द्रुति के प्रति माधुर्य गुणवान् एक ही को कारण मान लेना सीधी बात है। तब हम कहेगे कि मम्मट-भट्ट आदि कितने ही विद्वानों ने मधुररस से दुति, अत्यन्त मधुररस से अत्यंत द्रुति-इत्यादिक जो कार्यों मे कमी-बेशी मानी है, उसके कारण माधुर्य-गुण-युक्त - होने से रस दुति का कारण होता है-यह मानना घेघे (घेघा