पृष्ठ:हिंदी रस गंगाधर.djvu/२६२

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इसी तरह "अलेले! सहस्समुप्पाडिमहरिजकुसगंथिमयाच्नमालापइवित्तिविस्सम्भिबालविहवन्दाकमणा बह्मणा-अरे ओ! तत्काल उखाड़े हुए हरित कुशों की गाँठों से बनी हुई अक्षमालाओं (जपमालाओ) के फिराने से बालविधवाओं के अन्तःकरणों को विश्वस्त करनेवाले ब्राह्मणो।... ..." इत्यादि विदूषक के वचन मे भी अनौचित्य दोष नहीं है, क्योंकि वह हास्य-रस के अनुकूल है। सो इस तरह यह अनौचित्य समझने की रीति दिखा दी गई है, सुबुद्धि पुरुषों को इसी प्रकार और भी सोच लेना चाहिए।

गुण

इन पूर्वोक्त रसों में माधुर्य, ओज और प्रसाद नामक तीन गुण वर्णन किए जाते हैं। उनके विषय मे कुछ विद्वानों का कहना है कि-संयोग-शृंगार मे जितना माधुर्य होता है, उससे अधिक करण-रस मे होता है और उन दोनों से अधिक होता है विप्रलंभ-शृंगार मे; एवम् इन सबसे अधिक शांतरस मे होता है, क्योंकि पूर्व पूर्व रस की अपेक्षा उत्तर उत्तर रस मे चित्त का द्रव विशेष होता जाता है। दूसरे विद्वानों का कथन है कि-संयोग-शृङ्गार से करण और शांत-रसों मे अधिक माधुर्य होता है, और इन दोनों से अधिक होता है विप्रलंभ-शृंगार मे। अन्य विद्वानों का यह कथन है कि-संयोग-शृंगार से करुण, विप्रलंभ-शृंगार और शांत इन तीनों रसों में अधिक होता है, फिर इन तीनों में कुछ