पृष्ठ:हिंदी रस गंगाधर.djvu/२६

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है कि भट्टोजि दीक्षित के गुरु शेषश्रीकृष्ण थे[]। और शेषवीरेश्वर शेषश्रीकृष्ण के पुत्र थे यह भी सिद्ध है[]। यही शेषवीरेश्वर पंडितराज के पिता पेरुभट्ट के एवं पंडितराज के गुरु हैं, जैसा कि पहले बताया जा चुका है। सो यह सिद्ध हो जाता है कि शेषवीरेश्वर और भट्टोजि दीक्षित समकालिक थे; क्योकि एक शेषश्रीकृष्ण के पुत्र थे और दूसरे शिष्य। और बहुत संभव है कि शेषवीरेश्वर भट्टोजि दोक्षित से बड़े रहे हों। कारण, एक तो उन्होंने अपने विद्यमान रहते भी मनोरमा का खंडन अपने पुत्र और शिष्य (पंडितराज) के द्वारा करवाया और अपने स्वयं पिता की पुस्तक के खंडन के प्रतिवाद में, कुछ भी न लिखा, जिसका रहस्य यही प्रतीत होता है कि उन्होंने अपने से छोटो की प्रतिद्वंद्विता करना अनुचित समझा हो। यह असंभव भी नहीं; क्योंकि प्राचीन पंडितों के शिष्य तो अति वृद्धावस्था तक—किंबहुना, देहावसान तक—हुआ करते थे और आज-दिन भी ऐसा देखा जाता है। पर, इसमें कोई संदेह नहीं कि दोनों समकालिक थे। साथ ही पूर्वोद्धृत श्लोकों से भी यह सिद्ध हो जाता है कि भट्टोजि दीक्षित और अप्पय दीक्षित समकालिक थे। तब, जब पंडितराज शेषवीरेश्वर से


  1. ...शेषवंशावतंसानां श्रीकृष्णपंडितानां चिरायाचिंतयोः पादुकयोः प्रसादादासादितशब्दानुशासनाः...' ('मनोरमाकुचमर्दन' में भट्टोजि दीक्षित का विशेषण)।
  2. 'मनोरमाकुचमर्दन' का वही आरंभ का भाग।