पृष्ठ:हिंदी रस गंगाधर.djvu/२५७

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इसी तरह यदि रस के बालंबन और आश्रय का बीच बीच मे अनुसंधान न हो, तो दोष है, क्योंकि रस के अनुभव की धारा आलम्बन और आश्रय के अनुसंधान के ही अधीन है; अतः यदि उनका अनुसंधान न हो तो वह निवृत्त हो जाती है। इसी प्रकार जिस वस्तु का वर्णन करने से वर्णन किए जानेवाले रस को कोई लाभ न हो, उसका वर्णन प्रस्तुत रस को समाप्त कर डालता है, अत: ऐसा वर्णन भी दोष ही है।

अनौचित्य

जो बातें अनुचित हैं, उनका वर्णन रस के भंग का कारण है, अतः उसे तो सर्वथा नहीं आने देना चाहिए। भंग किसे कहते हैं सो भी समझ लीजिए। जिस तरह शरबत आदि किसी तरल वस्तु मे करकर (कंकड़) गिर जाने के कारण, वह खटकने लगता है, इसी प्रकार रस के अनुभव मे खटकने को रस का भंग कहते हैं। और अनुचित होने का अर्थ यह है कि जिन जिन जाति, देश, काल, वर्ण, आश्रम, अवस्था, स्थिति और व्यवहार आदि सांसारिक पदार्थों के विषय मे जो जो लोक और शास्त्र से सिद्ध एव' उचित द्रव्य, गुण अथवा क्रिया आदि हैं, उनसे भिन्न होना। अच्छा, अब जाति आदि के अनुचित जो बातें हैं, उनके कुछ उदाहरण भी सुनिए। - जाति के विरुद्ध, जैसे-बैल और गाय आदि के तेज और बल के कार्य पराक्रम आदि और सिह आदि का सीधापन आदि। देश के विरुद्ध जैसे-वर्ग मे बुढ़ापा,