पृष्ठ:हिंदी रस गंगाधर.djvu/२३८

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नम ते झपटत बाज लखि भूल्यो सकल प्रपंच। कंपित-तन व्याकुल-नयन लावक हिल्यो न रंच॥

एक दर्शक कहता है-बेचारे लवा (एक प्रकार का पक्षी) ने ज्योंही आकाश से झपटते हुए बाज को देखा, त्योंही मुँह सूख गया, देह थरथराने लगी, नेत्र व्याकुल हो गए और हिल भी न सका।

यहाँ बाज आलंबन है, उसका वेग-सहित झपटना उद्दीपन है, मुँह सूखना आदि अनुभाव हैं और दैन्य आदि व्यभिचारी भाव हैं।

वीभत्स-रस; जैसे-

नरवैर्विदारितान्त्राणां शबानां पूयशोणितम्।
आननेष्वनुलिम्पन्ति हृष्टा वेतालयोषितः॥

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फाड़ि नखन शव-आंतड़िन, रुधिर-मवाद निकारि।
लेपति अपने मुखन पै हरसि प्रेत-गन-नारि॥

एक मनुष्य किसी से रणांगण अथवा श्मशान का दृश्य कह रहा है-हर्षयुक्त वेतालों की स्त्रियाँ नखों से मुरदों की अंतड़ियों को फाड़कर मवाद और रुधिर को मुँह पर लेप रही हैं।

यहाँ मुरदे आलंबन हैं, अँतड़ियों का चीरना आदि उद्दीपन हैं, ऊपर से पाक्षिप्त किए हुए रोमांच, नेत्र मींचना आदि अनुभाव हैं और आवेग आदि संचारी भाव हैं।