पृष्ठ:हिंदी रस गंगाधर.djvu/२३३

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
( ११८ )


प्रकट होती है। इसी तरह 'यह कोई महापुरुष है। यह समझकर भक्ति भी उत्पन्न ही नहीं हो सकती; क्योंकि उसमे यशोदा का यह निश्चय रुकावट डालता है कि 'यह बालक मेरा पुत्र है। सो भक्ति की अपेक्षा भी आश्चर्य गाण नहीं हो सकता।

सहृदय-शिरोमणि प्राचीन आचार्यों (काव्यप्रकाशकार) ने जो उदाहरण दिया है-

"चित्रं महानेष तवाऽवतारः
क्व कान्तिरेषाभिनवैव भङ्गिः।
लोकोत्तरं धैर्यमहो प्रभाव:
काऽप्याकृतिनूतन एष सर्गः॥

भगवान् वामन को देखकर बलि कहते हैं-यह आपका महान अवतार लोकोत्तर है, ऐसी कांति कहाँ प्राप्त हो सकती है? यह चलने, बैठने, देखने आदि का ढग सर्वथा नवीन ही है; अलौकिक धैर्य है, विलक्षण प्रभाव है, अनिर्वचनीय ' आकार है; यह एक नई सृष्टि है-अब तक ऐसा कोई उत्पन्न ही नही हुआ।

उसके विषय मे हमे यह कहना है कि इस पद्य में 'विस्मय' स्थायीभाव की प्रवीति भले ही हो, उसके विषय मे हमे कुछ नही कहना है; पर उस विस्मय के कारण इस पद्य को अद्भुत-रस की ध्वनि कैसे कहा जा सकता है? क्योंकि इस पद्य मे जिस महापुरुष का वर्णन किया गया है, उसके विषय