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शय, मौत आ चुकी है, अब इस शेष वय में क्यों निडर होकर सो रहे हो? अब तो कुछ ईश्वर का स्मरण-भजन करो और अपने जीवन को सुधारो। पर, इस पद्य के सुनते ही पंडितराज ने ज्योंही मुँह उघाड़कर उनकी तरफ देखा, त्योंही पंडितराज को पहचानकर अप्पय दीक्षित ने इस पद्य का उत्तरार्ध यो पढ़ दिया कि "अथवा सुखं शयोथा, निकटे जागर्त्ति जाह्नवी भवतः" अर्थात् अथवा आप सुख से सोते रहिए क्योंकि आपके पास में भगवती जाह्नवी जग रही हैं। बस, आपकी फिकर उन्हें है, आप निडर रहिए[१]।"
यह भी कहा जाता है कि "पंडितराज जिस समय काशी में पढ़ते थे, उस समय जयपुर-नरेश मिरजा राजा जयसिंहजी काशीयात्रा करने गए थे। वहाँ की विद्वन्मंडली में इनकी प्रगल्भता देखकर वे बड़े प्रसन्न हुए और इन्हें अपने साथ जयपुर ले आए। साथ ले आने का कारण यह था कि शाही दरबार में राजपूत लोगों के विषय में मुल्ला लोग यह कहा करते थे कि 'आप लोग वास्तविक क्षत्रिय नहीं हैं, क्योंकि जब परशुरामजी ने पृथ्वी को २१ बार निःक्षत्रिय कर दिया, तो फिर आप लोगों के पूर्वज बच कहाँ से सकते थे?' दूसरे, यह भी कहा जाता था कि 'अरबी भाषा संस्कृत-भाषा से प्राचीन है'। ये बातें पूर्वोक्त नरेश को बहुत खटका करतीं थीं। पंडितराज ने वादा किया था कि हम उन्हें निरुत्तर कर
- ↑ यह किंवदंती कुवलयानंद (निर्णय सागर) की भूमिका में है।