पृष्ठ:हिंदी रस गंगाधर.djvu/१८८

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आदि में, अपने प्रात्मा मे, शोक आदि से युक्त दशरथ आदि के अभेद का आरोप कर लेने पर भी आनंद ही होना चाहिए; पर अनुभव यह है कि उन अवस्थाओं में केवल दुःख ही होता है; इस कारण यहाँ भी केवल दुःख होता है यही मानना उचित है। इसके उत्तर मे हम कहते हैं कि यह काव्य के अलौकिक व्यापार (व्यंजना) का प्रभाव है कि जिसके प्रयोग मे आए हुए शोक आदि सुंदरतारहित पदार्थ भी अलौकिक आनंद को उत्पन्न करने लगते हैं क्योंकि काव्य के व्यापार से उत्पन्न होनेवाला रुचिर प्रास्वाद, अन्य प्रमाणों से उत्पन्न होनेवाले अनुभव की अपेक्षा विलक्षण है। यहाँ यह भी समझ लेना चाहिए कि पूर्वोक्त वाक्य के "काव्य के व्यापार से उत्पन्न होनेवाला" इस अंश का अर्थ है, काव्य के व्यापार से उत्पन्न होनेवाली भावना से उत्पन्न हुए रति आदि का आस्वाद, अतः रस का प्रास्वाद यद्यपि काव्य के व्यापार से उत्पन्न नहीं होता है, कितु काव्य के बार बार अनुसंधान से उत्पन्न होता है, तथापि कोई हानि नही। अव रही, शकुंतला आदि मे अगम्या होने का ज्ञान । हमे क्यों नही उत्पन्न होता है, यह बात, सो इसका उत्तर यह है कि अपने आत्मा मे दुष्यंत से अभेद समझ लेने के कारण हमे उस (अगम्या होने) की प्रतीति नहीं होती।

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अन्य मत

इसके अतिरिक्त अन्य विद्वानों का मत है कि व्यंजना