पृष्ठ:हिंदी रस गंगाधर.djvu/१८२

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का नाम रस है। यह आखाद ब्रह्मानंद के आखादं का समीपवर्ती या सहोदर कहलाता है, ब्रह्मानंद रूप नही, क्योंकि यह विषयों ( रति आदि) से मिश्रित रहता है और उस (ब्रह्मानंद) में विषयानंद सर्वथा नहीं रहता। इस तरह वह सिद्ध हुआ कि पूर्वोक्त रीति से काव्य के तीन अंश हैं-एक अभिधा, जिससे काव्यगत पदार्थों को समझा जाता है; दूसरा भावना, जिससे उनमे से व्यक्तिगतता हटा दी जाती है और तीसरा भोगीकृति, जिससे उनका आस्वादन किया जाता है।

इस मत मे पहन्ते मत से, केवल, भावकत्व अथवा भावना नामक अतिरिक्त क्रिया का स्वीकार करना ही विशेषता है; भोग आवरण से रहित चैतन्य रूप है और आवरण भंग करनेवाली भोगीकृति नामक क्रिया तो (पहले मत की) व्यंजना ही है, इसमे और उसमे कुछ अंतर नहीं। एवं भोगकृत्व तथा ध्वनित करना इन दोनों मे भो कोई भेद नहीं। शेष सव पद्धति वही है।

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नवीन विद्वानो का मत

साहित्यशास्त्र के नवीन विद्वानो का मत है-काव्य में कवि के द्वारा और नाटक मे नट के द्वारा, जव विभाव आदि प्रकाशित कर दिए जाते है, वे उन्हें सहृदयों के सामने उपस्थित कर चुकते हैं, तब हमे, व्यंजना वृत्ति के द्वारा, दुष्यंत आदि की जो शकुंतला आदि के विषय मे रति थी, उसका ज्ञान होता है-हमारी समझ मे यह आवा है कि दुष्यंत आदि का