पृष्ठ:हिंदी रस गंगाधर.djvu/१७१

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कुछ का नही, वह लुप्त हो जाती है; और सांसारिक भेद-भाव निवृत्त होकर उसे आत्मानंद सहित रति आदि स्थायी भावों का अनुभव होने लगता है। पूर्वोक्त अलौकिक क्रिया को विभाव, अनुभाव और संचारी भाव उत्पन्न करते हैं—अर्थात् वह उन तीनों के संयोग से उत्पन्न होती है।

अब यह भी समझिए कि विभाव, अनुभाव और संचारी भाव क्या वस्तु हैं। जो रति आदि चित्तवृत्तियाँ आत्मानंद के साथ अनुभव करने पर रसरूप में परिणत होती हैं, वे जिन कारणों से उत्पन्न होती हैं, वे दो प्रकार के होते हैं। एक वे जिनसे वे उत्पन्न होती हैं और दूसरे वे जिनसे वे उद्दीप्त की जाती हैं, उन्हें जोश दिया जाता है। जिन कारणों से उत्पन्न होती हैं, उन्हें आलंबन कारण कहते हैं और जिनसे वे उद्दीप्त की जाती हैं, उन्हें उद्दीपन। इसी तरह पूर्वोक्त चित्तवृत्तियों के उत्पन्न होने पर, शरीर आदि में कुछ भाव उत्पन्न होते हैं, जो उनके कार्य होते हैं। और इसी प्रकार जब वे चित्तवृत्तियाँ उत्पन्न होती हैं तो उनके साथ अन्यान्य चित्तवृत्तियाँ भी उत्पन्न होती हैं, जो सहकारी होती हैं और उन चित्तवृत्तियों की सहायता करती हैं। इस बात को हम उदाहरण देकर समझा देते हैं। मान लीजिए कि शकुंतला के विषय में दुष्यंत की अंतरात्मा में रति अर्थात् प्रेम उत्पन्न हुआ, ऐसी दशा में रति का उत्पादन करनेवाली शकुंतला हुई; अतः वह प्रेम का आलंबन कारण हुई। चाँदनी चटक रही थी, वनलताएँ कुसुमित हो