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ताओं) के रक्षक हैं, उन-गोपाल अथवा वृषभवाहन (शिव)-आपको बार-बार नमस्कार है।

इसमे स्पष्ट दिखाई देता है कि अर्थ का चमत्कार शब्द मे लीन हो गया है-श्लोक सुनने से शब्द के चमत्कार की ही प्रधानता प्रतीत होती है, अर्थ का चमत्कार कोई वस्तु नहीं।

अधमाधम भेद क्यों नही माना जाता?

यद्यपि जिसमे अर्थ के चमत्कार से सर्वथा रहित शब्द का चमत्कार हो, वह काव्य का पाँचवा भेद "अधमाधम" भी इस गणना मे आना चाहिए; जैसे-एकाक्षर पद्य, अर्धावृत्ति यमक और पद्मबंध प्रभृति। परंतु आनंदजनक अर्थ के प्रतिपादन करनेवाले शब्द का नाम ही काव्य है, और उनमे आनंदजनक अर्थ होता नहीं, इस कारण "काव्यलक्षण" के हिसाब से वे वास्तव मे कान्य ही नहीं हैं। यद्यपि महाकवियों ने पुरानी परंपरा के अनुरोध से, स्थान स्थान पर, उन्हे लिख डाला है, क्यापि हमने उस भेद को काव्यों मे इसलिये नहीं गिना कि वास्तव मे जो बात हो उसी का अनुरोध होना उचित है, आँखें मींचकर प्राचीनों के पीछे चलना ठीक नहीं।

प्राचीनों के मत का खंडन

कुछ लोग काव्यों के ये चार भेद भी नहीं मानते; वेउत्तम, मध्यम एवं अधम-तीन प्रकार के ही काव्य मानते हैं। उनके विषय मे हमे यह कहना है कि अर्थ-चित्र और शब्द-चित्र दोनों को एक सा-अधम-ही बताना उचित नहीं,