मध्यम काव्य
जिस काव्य में वाच्य-अर्थ का चमत्कार व्यंग्य अर्थ के चमत्कार के साथ न रहता हो-उससे उत्कृष्ट हो, अर्थात् व्यंग्य का चमत्कार स्पष्ट न हो और वाच्य का चमत्कार स्पष्ट प्रतीत होता हो, वह "मध्यम काव्य' होता है।
जैसे यमुना के वर्णन मे लिखा है कि-
तनयमैनाकगवेषणलम्बी कृतजलधिजठरप्रविष्टहिमगि
रिभुजायमानाया भागीरथ्याः सखी... ..।
(यह यमुना) उस भागीरथी की सखी है, जो, मानो, अपने पुत्र मैनाक को ढूढ़ने के लिये लंबी की हुई एवं समुद्र के उदर मे घुसी हुई हिमालय पर्वत की भुजा है।
यहाँ संस्कृत मे 'क्यङ्' प्रत्यय से और हिंदी मे 'मानो' शब्द से वाच्य उत्प्रेक्षा ही चमत्कार का कारण है। यद्यपि यहाँ पर, गंगाजी मे हिमालय पर्वत की भुजा की उत्प्रेक्षा की गई है, इस कारण "श्वेतता" और "पुत्र मैनाक को ढूंढने के लिये...समुद्र के उदर मे घुसी हुई" इस कथन से "पाताल की तह तक पहुँचना" व्यंग्य है, और उनका किसी अंश मे चमत्कार
आचार्यों को सम्मत है, अतः अत में विप्रलंभ-शृंगार के ध्वनित होने से इस काव्य को गुणीभूत व्यंग्य न मानना कुछ भी अभिप्राय नही रखता, अन्यथा काव्यप्रकाशकारादि के दिए हुए "प्रामतरुण तरुण्या श्रादि उदाहरण भी असंगत हो जायेंगे, क्योंकि अंततोगत्वा विप्रलंभ की ध्वनि तो वे भी है ही।